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प्रथम अध्याय : अगशास्त्र का परिचय
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स्थानांग तथा समवायांग - अगगास्त्र में स्थानाग तृतीय तथा समवायाग चतुर्थ अग है । इन दोनो अगो मे एक - एक श्रुतस्कन्ध है । स्थानाग मे १० अध्ययन और समवायाग मे १ अध्ययन है । दोनो अगो का वर्णन तथा वर्णनीय विषय प्राय एक ही प्रकार के है । इनकी रचना वौद्धो के अगुत्तरनिकाय के ढंग की है । रथानाग मे पदार्थो के गुण, द्रव्य, क्षेत्र, काल, तथा पर्यायो की व्याख्या की गई है । इसके अतिरिक्त पर्वत, नदी, समुद्र, सूर्य, भवन, विमान, निधि, पुरुषो के प्रकार, स्वर ज्योनिप्सचार आदि का विस्तृत वर्णन भी इस अग में है । आत्मा, पुद्गल, ज्ञान, नय, प्रमाण आदि दार्शनिक विषयो की चर्चा भी बहुत सुन्दर ढंग से इस अंग मे की गई है । भगवान् महावीर के शासन मे हुए ७ निह्नवो का वर्णन भी इसमें समाविष्ट है । ऐसे ७ व्यक्ति बताये गये है, जिन्होने महावीर के सिद्धान्तो की भिन्न-भिन्न वातो को लेकर अपना मतभेद प्रकट किया, वे ही निह्नव कहे जाते है ।" एकरूप पदार्थो का वर्णन ( एकविध वक्तव्य ), दो रूप पदार्थो का वर्णन (द्विविधवक्तव्य ) और इसी प्रकार क्रम से एक-एक वढाते हुए १० रूप तक के पदार्थो का वर्णन इस अग की एक विशिष्ट शैली है ।
समवायाग के वर्णन की शैली भी उपर्युक्त प्रकार की ही है । केवल अन्तर इतना है कि स्थानाग मे १० रूप तक के पदार्थो का वर्णन है, जव कि समवायाग मे १ से लेकर १-१ की वृद्धि करते हुए १०० रूप तक के पदार्थों का वर्णन है । तथा आगे अधिक वृद्धि करते हुए कोटि-कोटि रूप तक के पदार्थों का वर्णन है । स्थानाग का वर्णन कुछ विस्तृत है, किन्तु समवायांग का सक्षिप्त है । स्थानाग मे एक प्रकार के पदार्थो का वर्णन करने के लिए अनेक सूत्र है और समवायाग मे एक प्रकार के पदार्थो का वर्णन करने के लिए एक ही सूत्र है । इसमे जम्बूद्वीप, धातकीखड द्वीप, पुष्करार्ध द्वीप तथा पर्वतों के विस्तार, ऊँचाई तथा प्रकार आदि का वर्णन है । समवायाग मे १२ अगो के वर्णनीय विषयो की भी व्याख्या की गई है।
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स्थानाग ५८७
२ समवायाग, १३८-१३९, नन्दीसूत्र, ४७-४८