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सप्तम अध्याय : ब्राह्मण तथा श्रमण-संस्कृति
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से जानता था । उसका जीवन तपोमय था । उसकी व्याख्यानशैली शुद्ध थी, वह कुशल विद्वान् और सभी धर्मो का पंडित होता था । "
बौद्ध शिक्षण मे गौतम के व्यक्तित्व की सर्वोपरि महिमा थी । गौतम ने जो निजी आदर्श उपस्थित किया था, वह बौद्ध शिक्षण के परवर्ती आचार्यो के लिए मार्ग-प्रदर्शक बन कर रहा । गौतम मे अदम्य उत्साह था। उनमे कर्मण्यता की कल्पनातीत शक्ति थी और नई-नई विषम परिस्थितियो को सुलझाने के लिए प्रत्युत्पन्न वुद्धि और समाधान की क्षमता थी । सारे भारत के भिक्षु गौतम के समीप अपने संदेहो को मिटाने के लिए आते थे |
समावर्तन - वैदिककाल में अध्ययन समाप्त हो जाने पर कुछ विद्यार्थी आचार्य की अनुमति से घर लौट जाते थे । आश्रम छोड़ते समय आचार्य विद्यार्थी को कुछ ऐसा उपदेश -- दीक्षान्त भाषण देता था, जो उसके भावी जीवन की प्रगति में सहायक होता था ।
इस अवसर पर ब्रह्मचारी के शरीर का अलकरण किया जाता था । समावर्तन का अर्थ है, लौटना । इस संस्कार मे ब्रह्मचारी का विधिपूर्वक स्नान होना था । इसी "स्तान" को महत्व देते हुए इस संस्कार को भी स्नान कहा गया है । समावर्तन संबंधी स्नान कर लेने के बाद व्यक्ति 'स्नातक, कहलाता था । विवाह के समय तक स्नातक पद की प्रतिष्ठा रहती थी और विवाह होते ही स्नातक गृहस्थ की उपाधि से अलकृत हो जाता था ।
जनसूत्रो मे भी समावर्तन संस्कार का वर्णन मिलता है। छात्र जब अध्ययन समाप्त करके घर वापिस आता था, तब अत्यन्त समारोह के साथ उसे स्वीकार किया जाता था । रक्षित जब पाटलिपुत्र से अध्ययन समाप्त करके घर वापिस आया तो उसका राजकीय सम्मान किया गया। सारा नगर पताकाओ तथा बंदनवारों से सुसज्जित किया गया ।
१ सूत्रकृताग, ९, १४, १६-२७ ।
२
महावग्ग, ८, १३, ७ ।
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" आजायासंगमात् स्नातको भवति, अत ऊर्ध्व गृहस्थः ।' बोघायनगृह्य सूत्र, परिभाषा, १, १५, १० ।