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प्रथम अध्याय
अंग शास्त्र का परिचय
अंग शास्त्र :
ब्राह्मण धर्म मे वेद (श्रुति) का तथा वौद्ध धर्म मे त्रिपिटक का जैसा महत्त्व है, वैसा ही महत्त्व जैन धर्म मे अगगास्त्र का है । समवायाग मे अगगास्त्र को 'गणिपिटक' कहा गया है । टीकाकार अभयदेव ने 'गणिपिटक' का अर्थ निम्नप्रकार किया है-गणी अर्थात् आचार्यों का, पिटक अर्थात् धर्मरूप निधि रखने का पात्र । '
गणिपिटक के १२ भेद है -
१ आयारे २ सूयगडे ३ ठाणे
४ समवाए
५ विवाहपन्नत्ति ६ णायाधम्मकहाओ
७ उवासगदसाओ
( आचाराग) (सूत्रकृताग) ( स्थानाग) (समवायाग)
( व्याख्याप्रज्ञप्ति) (ज्ञाताधर्म कथा)
( उपासकदशाग)
( अन्तकृद्दगाग)
द अतगडदसाओ
E अणुत्तरोववाइयदसाओ (अनुत्तरौपपातिकदगाग )
१० ११ विवागसुय १२ दिट्ठिवाए
पण्हावागरणाइ
( प्रश्नव्याकरणाग ) (विपाकश्रुत) ( दृष्टिवाद)
आगम मे यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आचाराग आदि अगो की रचना महावीर के अनुयायी गणधरो ने की है 13 'जिन'
१ ममवायाग १३६ (अभयदेववृत्ति, पृ० १०० अ ) २ नदीसूत्र, ४४
3 नदीसूत्र वृणि, पृ० १११, ला० इन ए० इ०, पृ० ३२
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