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पंचम अध्याय उपासक-जीवन
उपासक अवस्था
जैनागम के अनुसार निर्वाण प्राप्ति का एकमात्र मार्ग धर्म है । उसके दो भेद है - सागार-धर्म और अनगार-धर्म, गृहस्थ का धर्म और साधु का धर्म । सागार-धर्म एक सीमित मार्ग है । वह जीवन की सरल किन्तु छोटी पगडडी है । गृहस्थ का धर्म अणु है, छोटा है, किन्तु वह हीन एव निन्दनीय नही है । इस सागारधर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति श्रमणोपासक अथवा उपासक कहलाता है । '
इस द्विविध धर्म का मूल आधार विनय अर्थात् आचार है, अत इन दोनो को आगार - विनय और अनगारविनय भी कहा गया है । आत्मधर्म मे दृढ श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति आत्मा और अनात्मा के ज्ञान को प्राप्त कर, सासारिक परिस्थितियों के वशीभूत होकर जब अपने को गृह का पूर्ण रूप से त्याग करने में असमर्थ पाता है तो वह इस प्रकार का संकल्प करता है कि मै अभी श्रमणोपासक के व्रतो को ही ग्रहरण कर आत्मा का ध्यान करूँगा । 3
गृहस्थ संसार में रहता है । अत उसके ऊपर परिवार, समाज तथा राष्ट्र का उत्तरदायित्व होता है । यही कारण है कि वह पूर्णरूप से अहिंसा और सत्य के राजमार्ग पर नही चल सकता । उसे कभी-कभी
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स्यानाग सूत्र, ७२ । २. नायाधम्मक हामो, ६०, पृ० ७४ ।
३. वही, ६०, पृ० ७३ ।
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