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पंचम अध्याय (उपासक-जीवन)
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१. उपासक-अवस्था २ उपासक-अवस्था का महत्व ३. उपासक-अवस्था मे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र
का महत्त्व ४ उपासक-अवस्था के भेद
उपासक-धर्म (अ) अरणुव्रत (आ) दिग्वत (इ) उपभोग-परिभोग- परिमाण-व्रत (ई) अनर्थदण्डविरमण (उ) सामायिक (ऊ) देशावकाशिक (ए) पोपघोपवास (ऐ) यथासंविभाग (ओ) उपासक की ११ प्रतिमा (औ) मारणांतिक सल्लेखना तथा मरणोत्तर
विधान ६ उपासक का जीवन-क्रम ७ उपासक की विचारधारा
षष्ठ अध्याय
(श्रमण-जीवन) श्रमण-अवस्था २. श्रमणशब्द का निर्वचन तथा समानार्थक शब्द ।। ३ श्रमण-अवस्था का महत्व ४ प्रव्रज्या
(अ) प्रव्रज्या के कारण (आ) निष्क्रमण सत्कार श्रमण-अवस्था के भेद (अ) पुलाक (आ) वकुश
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