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(३) आस्रव (४) बंध (५) सवर (६) निर्जरा (७) मोक्ष
(८), (६) पुण्य तथा पाप (व) लोक का स्वरूप
(१) ऊर्ध्व-लोक (२) तिर्यग् लोक
(अ) जम्बूद्वीप (३) अधोलोक (स) जैनधर्म और ईश्वर
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चतुर्थ अध्याय (मानव-व्यक्तित्व का विकास)
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१. विराट् विश्व २. विश्व मे मानव का स्थान ३ मानव-जीवन की प्राप्ति ४. मानव-जीवन की महत्ता
विकास की परिभाषा
व्यक्तित्व का विकास तथा उसके साधन ७ उपासक तथा श्रमण जीवन ८ विकास की चरम अवस्था ६ व्यक्तित्व-विकास की विभिन्न अवस्थाएँ (अ) (अ) अरिहत
(१) तीर्थकर (आ) सिद्ध (इ) आचार्य (ई) उपाध्याय
(उ) साधु १० व्यक्तित्व-विकास की विभिन्न अवस्थाएँ (व)
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