________________
१०८ ]
जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास पूर्ण वन जाता है। उसे हम अलौकिक ऐश्वर्य का भोग करने के कारण 'ईश्वर' आत्मा के परमोत्कृष्ट पद प्राप्त कर लेने के कारण 'परमात्मा' आदि नामो से पुकारते है।
परमात्मपद को प्राप्त ईश्वर दो प्रकार के माने गए है-सदेहमुक्त तथा विदेहमुक्त।
परमात्मपद पा लेने के बाद आत्मा जब तक संसार मे निवास करती है, तव तक वह सदेहमुक्त परमात्मा है । उसे 'अरिहत' 'जीवन्मुक्त' आदि के नामो से संबोधित किया जाता है । वही आत्मा शरीर छोड़ देने के बाद पूर्ण परमात्मपद को प्राप्त कर सिद्ध संजा को ग्रहण करती है ।२ महावीर ने बारह वर्ष की निरन्तर कठिन तपश्चर्या के बाद अरिहत पद को पाया और लगभग तीस वर्ष के अरिहत पद के वाद शरीर का त्याग कर सिद्धपद को प्राप्त किया।
१. स्थानाग, २२६ २. वही, २६८. ३ कल्पसूत्र, १.५ १२७ (जैनसूत्राज भाग १, पृ० २६६)