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भाष्य और चार टीकाएं विद्यमान थीं।'
जैनेन्द्र सूत्र पाठ का संशोधित और परिवधित संस्करण शब्दार्णव कहलाता है। इसके कर्ता गुणनंदि हैं।" गुणनंदि का समय दसवीं शताब्दी माना गया है। शब्दार्णव की दो टीकाएं उपलब्ध हैं-'शब्दार्णव चन्द्रिका' और 'शब्दार्णव प्रक्रिया'। 'शब्दार्णव चन्द्रिका' के रचयिता सोमदेव हैं। ये शिलाहार वंश के राजा भोजदेव (द्वितीय) के समय में हुए हैं। इन्होंने अर्जुरिका नामक ग्राम के त्रिभुवन तिलक नामक जैनमंदिर में शक संवत् ११२७ में इसकी रचना की है। यह रचना सनातन जैन ग्रंथमाला से प्रकाशित है। ___'शब्दार्णव प्रक्रिया' जैनेन्द्र प्रक्रिया के नाम से मुद्रित है। जिस प्रकार अभयनंदि की वृत्ति के आधार पर प्रक्रियारूप पंचवस्तुटीका लिखी गयी है, उसी प्रकार सोमदेव की 'शब्दार्णव चन्द्रिका' के आधार पर यह प्रक्रिया लिखी गई है।
- जैनेन्द्र की उपलब्ध समस्त टीकाओं में अभयनन्दि कृत महावृत्ति ही सबसे प्राचीन है। इनका समय ई० सन् ७५० है । इन्होंने मंगलाचरण के श्लोक में पूर्ववर्ती प्राचीन टीकाओं का भी निर्देश किया है।
यच्छन्द लक्ष्णमसूब्रजपारमन्य-... ख्यक्त मुक्तमभिधाण विधौ दरिद्रैः । तत्सर्वलोक हृदयप्रिय चारुवाक्य---
र्व्यक्ती करोत्यमयनन्दि मुनि: समस्तम् ।। कठिनता से पार करने योग्य जिस शब्द लक्ष्य को दरिद्रों ने व्याख्या करने में स्पष्ट नहीं किया, उस संपूर्ण शब्द लक्षण को अभयनन्दी मुनि सबके हृदय को प्रिय लगने वाले सुन्दर वाक्यों से स्पष्ट करता है। __अत: स्पष्ट है कि अभयनन्दी ने अपने से पूर्ववर्ती व्याख्याकारों को 'दरिद्रः' पद से व्यक्त किया है। संभवत: ये व्याख्याएं लघुवृत्ति के रूप में रही होंगी। आचार्य अभयनन्दी की यह वृत्ति काशिका के समान बृहत् है। इसमें निम्न विशेषताएं विद्यमान हैं--
१. कात्यायन के वात्तिक और पतंजलि के महामाण्य से सार लेकर पूज्यपाद से छूटे हुए व्याकरण नियमों की पूर्ति वात्तिक, परिभाषा और उपाख्यान रचकर की।
२. शिक्षासूत्र भी इस महावृत्ति में पाये जाते हैं। १।१।२ की व्याख्या में लगभग ४० शिक्षासूव दिए गये हैं।
३. परिभाषाओं की व्याख्याएं भी वृत्ति में की गई हैं।
४. अभयनन्दी ने अपनी वृत्ति में अनेक उपादिसूत्र उद्धृत किए हैं। इसमें कुछ प्राचीन पंचपादी से मिलते हैं और कुछ पाठान्तर हैं । अत: जैनेन्द्र के उणादिसूत्रों को जानने के लिए इस महावृत्ति का अध्ययन परम आवश्यक है।
जैनाचार्यों का व्याकरणशास्त्र को योगदान : ४७