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दुर्व्यवहार नहीं करते थे। यह सब जैन शासकों के काल में होता था। उनके बाद जागरूक जैन वर्ग और समाज जैन धर्म के विकास में सदा सहायक रहा है। गुजरात में सिद्धराज और कुमारपाल का आश्रय अधिक समय तक नहीं रहा। बाद में व्यापारी वर्ग ने जैन साधुओं तथा जनसाधारण को विभिन्न धार्मिक एवं उदार कार्यों के लिए सदा प्रोत्साहन दिया। यही बात अन्य स्थानों और राज्यों के लिए भी लागू होती है।
दक्षिण भारत में कुछ मंदिर इतने अधिक विशाल तथा वास्तुकला की दृष्टि से इतने अधिक समृद्ध हैं कि वहां का गरीब समाज अब उनको सही हालत में भी नहीं रख सकता। करकल में अठारह जैन मंदिर हैं और कुछ वर्षों पहले वहां अठारह जैन घर भी नहीं थे। यदा-कदा यह प्रश्न पूछ लिया जाता है कि कैसे और क्यों इतने सारे मंदिर बन गये और आज उपेक्षित हैं। इस समस्या को निकट से समझने का प्रयास मैंने किया है। जब वहां जैन राजाओं का शासन था तब वहां कुछ मंत्री और सेनापति भी जैन थे। इनमें से प्रत्येक ने मंदिर बनवाया क्योंकि उनके लिए यह सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रश्न था तथा धार्मिक कर्तव्य की बात थी। वहां के प्रतिष्ठित लोगों में तथा व्यापारियों में एक प्रकार की मौन स्पर्धा चल पड़ी थी, इसलिए प्रत्येक ने सुन्दर और सुन्दरतर मंदिर बनवाये । किन्तु जब राज्याश्रय समाप्त हुआ तब यह प्रतिष्ठित वर्ग भी, जो राजा पर आश्रित था, राजधानी को छोड़कर अन्यत्र चला गया। इस प्रकार उनके द्वारा निर्मित मंदिरों की उपेक्षा प्रारंभ हो गई । मूडबिद्री में भी बहुत से मंदिर हैं। उनका निर्माण भी व्यापारियों आदि के द्वारा हुआ है। इनके व्यापारिक सम्बन्ध अफ्रीकी देशों से थे। जो वस्तुएं वे वहां भेजते थे, उनके बदले वे आभूपण, मोती आदि मंगवाते थे। भक्ति और धार्मिकता के कारण अपने व्यापारिक लाभ से उन्होंने जिन की मूर्तियां बनवाईं। यह सब राष्ट्रीय धन है और इस पर हमें गर्व होना चाहिए।
शायद आप में से बहुत यह जानते होंगे कि मैसूर से चालीस मील दूर श्रवण बेलगोला में एक पहाड़ी के ऊपर बाहुबलि अथवा गोम्मटेश्वर की ५७ फीट ऊंची मूर्ति है । कला का यह एक उत्कृष्ट नमूना है जिस पर किसी भी देश को गर्व होगा। इसका निर्माण और प्रतिष्ठा चामुण्डराय ने की थी। चामुण्डराय का व्यक्तिगत नाम था गोम्मट'; और इसीलिए बाद में जहां कहीं यह मूर्ति बनाई गई- इसका नामकरण भी उस पर ही हुआ। चामुण्डराय की वह भावना आज भी अपने देश में विद्यमान है। कुछ ही महीनों पहले धर्मस्थल के श्रीमन् वीरेन्द्रजी हेगडे ने एक प्राय: ३६ फीट ऊंची गोम्मटेश्वर की मूर्ति बनवाई है। इसका उत्कीर्णन करकल में हुआ था और स्थापना धर्मस्थल में हुई जो कि दक्षिण में एक महान् धार्मिक स्थान है। इस समारोह में मैं अध्यक्ष था । इस अवसर पर एक विशाल जलूस निकाला गया। ऐसा जुलूस कभी भी राजनैतिक नेता अथवा सभी
२८ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान