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स्वीकार किया गया। डा० एच० सी० भयाणी (अहमदाबाद)ने 'द इवोल्यूसन आफ सनत्कुमारचरिअ' नामक निबंध में प्राकृत की इस रचना का मूल्यांकन प्रस्तुत किया। सनत्कुमार को बारह चक्रवतियों में से एक माना गया है। डा. देवेंद्रकुमार शास्त्री ने 'कंट्रीब्यूसन आफ अपभ्रंश टू इंडियन लैंग्वेजेज' नामक निबंध में भारतीय भाषाओं में अपभ्रंश के दाय को अनेक उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया। डा० समतानी के इस प्रश्न पर कि सिंधी भाषा का वाचड़ अपभ्रंश से क्या संबंध है, डा० भयाणी ने स्पष्ट किया कि वाचड़ अपभ्रंश का उल्लेख व्याकरण एवं अलंकार ग्रंथों में नहीं मिलता। भोज ने ही विभिन्न अपभ्रंशों के नाम गिनाये हैं, यद्यपि सिंधी आदि आधुनिक भाषाओं का अपभ्रंश के विभिन्न रूपों से घनिष्ठ
संबंध है।
धर्म एवं दर्शन
जैन धर्म एवं दर्शन से संबंधित शोध-निबंध संगोष्ठी के दो अधिवेशनों में पढ़े गये । अहिंसा का सिद्धांत जैन धर्म की धुरी है । अन्य धर्मों में भी अहिंसा के विभिन्न रूप म्वीकृत हैं। अत: मंगोष्ठी में अहिंसा पर व्यापक चर्चा हुई। डा० हुकमचंद भारिल्ल ने 'जैन दर्शन में अहिंसा' विषय पर प्रकाश डालते हुए अहिंसा के सैद्धान्तिक पक्ष को पुष्ट किया। वीतराग आत्मा के स्तर से अहिंसा को समझना कुछ विद्वानों को व्यावहारिक नहीं लगा। डा० कमलचंद सोगानी ने कहा कि अहिंसक होने के लिए वीतरागी होना अनिवार्य शर्त नहीं है । और डा० कलघाटगी ने जीवों के प्रति आदरभाव को ही अहिंसा माना तथा उसके विधेयात्मक पक्ष पर बल दिया। डा० घडफले एवं डा० नारायण समतानी ने प्रश्नोत्तरों द्वारा बौद्धधर्म के संदर्भ में अहिंसा की व्याख्या की तथा जैन धर्म की अहिंसा को अधिक सूक्ष्म बतलाया ।प्रो० चांदमल कर्णावट ने अहिंसा के व्यावहारिक पक्ष को स्पष्ट किया तथा डा. मनोहरलाल दलाल ने युद्ध-सहिता के परिप्रेक्ष्य में अहिंसा-पालन की संभावनाओं पर विचार किया । जैन धर्म में अहिंसा विषयक मान्यताओं का अधिक स्पष्टीकरण पं० दलसुख भाई मालवणिया के 'भगवान महावीर की अहिंसा' नामक निबंध-वाचन से हुआ। आपने अहिंसा के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डाला। ___संगोष्ठी में अहिंमा को प्रतिपादित करनेवाले अन्य निबंध भी पढ़े गये। डा० एम० जी० धड़फले का 'मम आफ-मूटम आफ द डाक्ट्राइन आफ नान-वॉयलेन्स एज इम्प्लाइड इन द जैन फिलासॉफी', डा० दयानंद भार्गव का 'सम चीफ करेक्टरिक्टिस आफ द जैन कंसेप्ट आफ नान-बॉयलेन्स', डा० नारायण समतानी का 'नान-वॉयलेन्स वाइस-ए-वाइस मैत्री : बुद्धिस्ट एंड जैन एप्रोच' तथा डा० आई० मी० शर्मा का 'इंफलुएन्स आफ जैनिज्म आन महात्मा गांधीज कंसेप्ट आफ नान-व्यायलेन्स' आदि निबंध संगोष्ठी में अधिक चचित हुए।
संगोष्ठी का सिंहावलोकन : १३