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मूर्तियों और उनके तथा उनके शिष्यों द्वारा लिखित मराठी रचनाओं से प्राप्त तथ्यों का संकलन हमारे 'भट्टारक संप्रदाय' तथा डॉ० अक्कोलेजी के 'प्राचीन मराठी जैन साहित्य' में उपलब्ध है । उल्लेखनीय बात यह है कि इस प्रदेश में हिन्दी की भी कई रचनाएं उपलब्ध होती हैं । छत्रसेन का द्रौपदीहरण, गंगादास की रविव्रतकथा, महीचन्द्र का कालीगोरीसंवाद, ज्ञानसागर की अक्षरबावनी, पाम कविका भरत भुजबलचरित्र तथा धनसागर का पार्श्वनाथ छप्पय – ये इनमें से कुछ रचनाएं पठनीय हैं। ये सब सतरहवीं शताब्दी की हैं । संक्षेप में कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र में जैनों ने तथा हिन्दी साहित्य एवं गुहा, मंदिर और मूर्ति - शिल्प के योगदान किया है ।
१८८ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
प्राकृत, संस्कृत, मराठी विकास में प्रशंसनीय