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था। यह पत्र भी स्वर्गीय मुनि श्री कान्तिसागर ने प्रकाशित करा दिया है। पद्मसिंह ने यह यात्रा सं० १८०५ में प्रारंभ की थी और १६ वर्ष बाद सं० १८२१ में वह लौटकर सकुशल स्वदेश आया था। उसकी यात्रा का मार्ग इस्तंबूल' तक प्रायः वही रहा है जो बुलाकीदास का रहा है, पर उसके आगे वह अजितनाथ के मंदिर से युक्त किसी ताल, तलंगपुर, चंद्रप्रभु तीर्थ, नवापुरी पाटण और तारातंबोल (द्वितीय) की यात्रा का विवरण देता है । पद्मसिंह इस्पहान को आशापुरी तथा इस्तंबूल को तारातंबोल नाम देता है। ऐसा वह संभवत: विस्मृति से अथवा ध्यान चक जाने से प्रवाह में लिख गया है।
शीलविजय की तीर्थमाला के समान ही दिगम्बर जैन पुस्तकालय, कापड़िया भवन, सूरत से प्रकाशित ऐसी ही एक अन्य तीर्थमाला में भी उत्तर दिशा के तीर्थवर्णन में पूर्व से पश्चिम में बहने वाली गंगा नदी के किनारे पर अनेक जैन मंदिरों की विद्यमानता का उल्लेख किया गया है। उसमें तारातंबोल में भी जैन मंदिरों और मूर्तियों की वंदना के साथ-साथ किसी 'जवला गवला' नामधारी शास्त्र की विद्यमानता की भी सूचना दी है। तीर्थमाला में तारातंबोल के मार्ग में मांगीतुंगी पर्वत पर २८ हाथ (४२ फुट) और ४८ हाथ (७२ फुट) आकार की मूर्ति का भी उल्लेख किया है, जिसके पांव के अंगूठे पर २८ नारियल ठहर सकते थे। इसी प्रकार एक ऐसे सरोवर का भी उल्लेख किया है जिसमें ६ हाथ x १० हाथ आकार की शान्तिनाथजी की प्रतिमा स्थित थी।
पद्मसिंह ने इस्तंबूल में मुकुट स्वामी की ३८ हाथ x २८ हाथ (५७ फुट x ४२ फुट) आकारं की निराधार खड़ी मूर्ति का विवरण दिया है, जिसके पांव के अंगूठे पर भी उपर्युक्त मांगीतुंगी पर्वत पर खड़ी मूर्ति के पांव के अंगूठे के समान २८ नारियल रखे जा सकते हैं। प्रतीत होता है दोनों वर्णन एक ही मूर्ति के हैं। इस्तंबूल में निराधार खड़ी इस विशाल मूर्ति का वर्णन हमें इसी नगर में खड़ी हरक्यूलीज की उस विशाल मूर्ति की याद दिलाता है जो विश्व के आठ आश्चर्यो में से एक माना जाता रहा है । पद्मसिंह इस्तंबूल से ६०० कोस की दूरी पर स्थित किसी ताल में अजितनाथ की २० हाथ x ६ हाथ या ३० x ६ वर्ग फुट आकार की मूर्ति की विद्यमानता का वर्णन करता है, जहां उसे नाव के द्वारा जाना पड़ा था। वह वहां से ५०० कोस दूरस्थ तलंगपुर नगर का वर्णन करता है और सूचना देता है कि वहां २८ जैन मंदिर थे। तलंगपुर से वह ७०० कोस दूर नवापुरी पट्टन जाता है—मार्ग में किसी चन्द्रप्रभु के मंदिर के दर्शन भी करता है । पर इस मंदिर का निश्चित स्थान वह नहीं देता। नवापुरी पट्टन से ३०० कोस स्थित तारातंबोल
१. जैन सत्य प्रकाश, वर्ष ४, अंक ३ (सं० १९६४ आसोज वदी ७) २. मूलचंद किसनदास कापड़िया : वृहत् सामयिक पाठ और वृहत्प्रतिक्रमण,पृ० १६४
१७० : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान