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एवं गणितज्ञों का विशेष योगदान रहा। आज के विज्ञान में राशि सिद्धांत का वृहद्स्तर पर प्रयोग हुआ है और अनेक समस्याओं का विश्लेषण कर उनका हल ढूंढ़ने में उसकी बड़ी भूमिका रही है। दिनोंदिन समुद्र की भांति उमड़ते हुए इस सिद्धांत ने संपूर्ण वैज्ञानिकी एवं मानविकी को व्याप्त कर लिया है। यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य है कि जैन साहित्य के निर्माताओं ने भी राशि सिद्धांत की खोज की और उसका अप्रतिम प्रयोग कर्म सिद्धांतादि के निरूपण में किया।
दूसरा गणितीय विषय त्रिलोक-संरचना विषयक है, जिसके संबंध में मंपूर्ण द्रवयों संबंधी द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव विषयक गणनाएं की गयी हैं। इन सभी के हेतु प्रमाण स्थापित किए गए हैं। लोक के विषय में यह विभाग गणितीय दृष्टि से परिपक्व, पुष्ट, सैद्धांतिक तथा योजना-निबद्ध है। इस रूप में उसे प्रस्तुत करने की उनकी वैज्ञानिक भावना क्या रही होगी इसे जानने की ओर हमारा लक्ष्य होना चाहिए । जैसे पुस्तक में छपा हुआ नक्शा, भारत या अन्य देश को प्रदर्शित करता है, और भारत की चीज़ों और नक्शे में भरी हुई चीजों में एक-एक अथवा अन्य संवाद उपस्थित होता है, वैसे ही त्रिलोक का चित्रण जैन साहित्य में किन्हीं ऐसे ही चित्रण आधारों को लेकर हुआ होगा। यह वे और भी गहराई से अनुभव करते हैं जिन्होंने राशि सिद्धांत की दृष्टि प्राप्त कर ली है।
तीसरा गणितीय विषय कर्मफल अथवा कर्मनियंत्रण अथवा कर्मग्क्षपणा जानने विषयक है। फलित ज्योतिष का विषय भी नक्षत्र राशियों से संवादस्थापन के आधार पर कर्मफल के अंश का निरूपण करता है। निस्पंदेह, यह गणित अत्यंत जटिल है और आधुनिक विज्ञान में भी जीव-भौतिकी तथा जीवरसायन संबंधी खोजों में गणितीय साधनों का उच्चतम प्रयोग उतना नहीं बन सका है जितना भौतिकी में। आत्मा की विभाव परिणति का चित्रण कर्म परमाणुओं द्वारा परिलक्षित होता है। योग और मोह के गणितीय परिप्रेक्ष्य में कर्म की नाना प्रकार की अवस्थाओं का चित्रण भी गणित के क्षेत्र में उतर आता है। इन सभी का दिग्दर्शन कराने का गणितीय प्रयास जैन साहित्यकारों की एक अनुपम देन है, जिसका अध्ययन, पुनरुद्वार, पुन: विस्तार और पुन: प्रयोग लोककल्याणकारी सिद्ध हो सकता है।
जैनाचार्यों की गणित को योगदान : १४६