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________________ जैनाचार्यों का गणित को योगदान प्रो० लक्ष्मीचन्द्र जैन आधुनिक गणित के इतिहास में महावीराचार्य के सिवाय संभवत: एक-दो को छोड़कर अन्य जैन गणितज्ञ का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। इसी प्रकार ज्योतिष इतिहास में भी संभवत: एक-दो को छोड़कर किसी भी जैन ज्योतिषी का उल्लेख नहीं है। यह विदेश की स्थिति है। साधारण साहित्य के रूप में ग्रंथों का उल्लेख व शोध, प्रकाशन आदि इंडालॉजिकल केंद्रों में हो जाने मात्र से इतिहास नहीं बन पाता। गणितीय शोध और वह भी अंतर्राष्ट्रीय भाषा में होने पर ही देश-विदेशों के गणित-विज्ञान के इतिहास में तथ्यों का समावेश हो पाता है और उन पर उत्तरोत्तर शोध हो सकती है तथा विकसित होने के अवसर आ सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि शोध किसी व्यक्ति विशेष की रचनाओं को लेकर हो, क्योंकि जैन विचारधारा का प्रवाह अज्ञात महर्षियों एवं विद्वानों द्वारा उद्वेलित हुआ और मात्र कुछ आचार्यों को छोड़ शेष ने परंपरागत उल्लेख कर अपना नाम भी प्रकट नहीं किया । अतएव यह बतलाना कठिन है कि रचनाकारों में मौलिक अंशदान करनेवाले कौन हैं तथा उनका मौलिक अंशदान कितना है। रचनाकार या तो संग्रहकर्ता थे अथवा टीकाकार । यह मूलभूत तथ्य था कि वर्द्धमान महावीर के समय अथवा आसपास ज्ञान के भंडार अप्रतिम रूप से भर गए थे. जिनको संभालने तथा परंपरा को हस्तगत करने में ही विशेष प्रयास होते रहे-उन्हें और भी अन्य रहस्यों को उद्घाटित करने में विकसित करने के प्रयास प्रायः नहीं हो पाए, तथा कालांतर में वे प्रयास रूढ़ियों का रूप भी लेते गए, अर्थात् जिस वैज्ञानिक कौतूहल को भारत ने अखिल विश्व में जागृत कर दिया था, वह भारत में ही समय पाकर सो गया। पं० टोडरमल एवं उनके ग्रंथ जैन मनीषियों में सर्वप्रथम हम पं० टोडरमल का उल्लेख करेंगे जिनकी १३८ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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