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ग्रन्थों की सुरक्षा में राजस्थान के जैनों का योगदान
डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल
सारे देश में हस्तलिखित ग्रंथों का अपूर्व संग्रह मिलता है। उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक सभी प्रांतों में हस्तलिखित ग्रंथों के भंडार स्थापित हैं। इनमें सरकारी क्षेत्रों में पूना का भंडारकर-ओरियंटल इंस्टीट्यूट, तंजोर की सरस्वती महल लायब्रेरी, मद्रास विश्वविद्यालय की ओरियंटल मेनास्क्रप्टस लायब्ररी, कलकत्ता की बंगाल एशियाटिक सोसाइटी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। सामाजिक क्षेत्र में अहमदाबाद का एल० डी० इंस्टीट्यूट, जैन सिद्धांत भवन आरा, पन्नालाल सरस्वती भवन बंबई, जैन शास्त्र भंडार कारंजा, लिम्बीडी, सूरत, आगरा, दिल्ली आदि के नाम लिये जा सकते हैं । इस प्रकार सारे देश में इन शास्त्र भंडारों की स्थापना की हुई है । जो साहित्य-संरक्षण एवं संकलन का एक अनोखा उदाहरण है।
लेकिन हस्तलिखित ग्रंथों के संग्रह की दृष्टि से राजस्थान का स्थान सर्वोपरि है। मुस्लिम शासनकाल में यहां के राजा-महाराजाओं ने अपने-अपने निजी संग्रहालयों में हजारों ग्रंथों का संग्रह किया और उन्हें मुसलमानों के आक्रमण से अथवा दीमक एवं सीलन से नष्ट होने से बचाया । स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् राजस्थान सरकार ने जोधपुर में जिस प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान की स्थापना की थी उसमें एक लाख से अधिक ग्रंथों का संग्रह हो चुका है जो एक अत्यधिक सराहनीय कार्य है। इसी तरह जयपुर, बीकानेर, अलवर जैसे कुछ भूतपूर्व शासकों के निजी संग्रह में भी हस्तलिखित ग्रंथों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है जिनमें संस्कृत ग्रंथों की सर्वाधिक संख्या है। लेकिन इन सबके अतिरिक्त राजस्थान में जैन ग्रंथ भंडारों की संख्या सर्वाधिक है और उनमें संगृहीत ग्रंथों की संख्या तीन लाख से कम नहीं है।
राजस्थान में जैन समाज पूर्ण शांतिप्रिय एवं प्रभावक समाज रहा। इस प्रदेश की अधिकांश रियासतें जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, उदयपुर, बूंदी, डूंगरपुर, अलवर, भरतपुर, कोटा, झालावाड़, सिरोही में जनों की घनी आबादी
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