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वीर भवड़। मथुरा से उत्तरपूर्व की ओर पाञ्चालय राज्य था। इसकी राजधानी कांपिल्य थी। विक्रम की पहली शताब्दि में वहाँ तपन नामक राजा राज्य करता था। वीर भवरें इन्हीं के राज्य काल में हुये थे। वे एक प्रतिष्ठित जैन व्यापारी थे । इनका विवाह स्वयंवर की रीति से सुशीला नामक सेठ कन्या ले हुना था । वह सानन्द कालयापन कर रहे थे कि अचानक यवन लोगों का आक्रमण पाञ्चाल पर हुआ। यह आक्रमण सम्भवतः वादशाह महेन्द्र द्वारा हुआ था। भवड़ इस लड़ाई में बड़ी वहादुरी से लड़ा था; किन्तु आखिर वह कैद कर लिया गया। यवन लोग उसे अपने साथ तक्षशिला ले गये! किन्तु यह वीर वहाँ भी अपने धर्म का पालन करता रहा। आखिर धर्म प्रभाव से मुक्त होकर वह अपने देश को वापस चला आया। वज्रस्वामी के उपदेश से इसने शत्रुजय तीर्थ पर उत्सव रचा श्वेताम्बर सम्प्रदाय में यह वीर प्रसिद्ध है।
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जैन राजा पुष्पमित्र। सन् ४४५ ई० की बात है । गुप्तवंश के राजाओं की श्रीवृद्धि ** शत्रुजयमाहात्म्य ।
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