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राजा गर्दभिल के पुत्र थे । शकनरेशों ने गर्दभिल्ल को परास्त कर दिया था । विक्रमादित्य प्रतिष्ठान में जा रहा था और वह श्रान्त्रवंश का राजा था। उसने शकों को हराकर अपने पैतृक राज्य पर अधिकार जमाया था । विक्रमादित्य सा न्यायी श्रोर पराक्रमी राजा होना, सुगम नहीं है !
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श्रन्ध्रवंशीय जैन वीर ।
देश में जैनधर्म का प्रचार मौर्यकाल से बहुत पहले होगया था। इसी वीर धर्म की आन्ध्र में प्रधानता होने के कारण, वहाँ अनेक शूरवीरों का प्रादुर्भाव हुआ था । श्रन्ध्रवंशी कई एक जैनधर्म के भक्त थे । सम्राट् 'शातकाणि द्वितीय अथवा पुणमायि' एक जैनवीर थे । इसी तरह इस वंश के हाल राजा का जैन होना सम्भव है । कहते है कि इन्होंने ही पुनः शको को भगा कर अपना 'सालिवाहन- सम्वत्' चलाया था । 'साल' और 'हाल' शब्द पर्यायवाची है । ("शाला हालो मत्स्यभ है" - हेमे अनेकार्थ कोष )
* स्टडीज इन साउथ इंडियन जैनीज्म, भा० २ पृ०२ 1 जैन साहित्य सशोधक भा० १ अंक ४ पृ२०८