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[६] पाषाण की मनोज्ञ प्रतिमा सं० १६५४ की प्रतिष्ठित है। यहीं पर सं० १६०२ के भ० सुरेन्द्रकीर्ति जी के चरणचिन्ह हैं। कुमारपाल प्रतिवोध नामक श्वेताम्बर ग्रन्थ से मालूम होता है कि कुमारपाल राजा के समय तक समूचे तारंगा तीर्थ पर दिगम्बर जैनों का एकाधिकार था। पवंत की वन्दना करके वापस स्टेशन पर आ जावे और वहां से प्रावूरोड़ जावे ।
आबू पर्वत आबूरोड़ स्टेशन से आबू पर्वत १९ मील दूर है। प्राबू पर्वत पर दिलवाड़ा में विश्व विख्यात दर्शनीय जिन मन्दिर हैं। यहां दि० जैन धर्मशाला और बड़ा मंदिर श्री प्रादिनाथ स्वामी का है । शिलालेख से प्रकट है कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा वि० सं० १४६४ में मिति बैशाख शुक्ल १३ को ईडर के भट्टारक महाराज ने कराई थी। दिलवाड़ा में श्री वस्तुपाल-तेजपाल और श्री विमलशाह द्वारा निर्माणित संगमरमर के पांच मंदिर अद्भुत शिल्पकारी के बने हुए हैं । इनकी कारीगरी देखते ही बनती है। करोड़ों रुपयों की लागत से यह मंदिर संसार की आश्चर्य जनक वस्तुओं में गिने जाते हैं । इनके बीच में एक छोटा सा प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर भी है। इनके दर्शन करना चाहिए। इस क्षेत्र का मेला चैत बदी ८ को भरता है। यहाँ से अचलगढ़ जावे। वहां भी श्वेताम्बरीय जैनों के दर्शनीय मंदिर हैं। जिनमें १४४४ मन स्वर्ण की जिन प्रतिमायें विराजमान हैं। उन्हीं में दिगम्बर प्रतिमा भी बताई जाती है । इस प्रतिशयक्षेत्र के दर्शन करके अजमेर पावे ।
अजमेर चौहान राजामों की राजधानी अजमेर आज भी राजपूताना का प्रमुख नगर है। कहते हैं कि उसे चौहान राजा अजयपाल ने बसाया था। इन चौहान राजामों में पृथ्वीराज द्वि० और सोमेश्वर