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स्वामी के चरण चिन्ह है । जिनके नीचे पास ही शिला भाग में उकेरी हुई एक प्राचीन दिगम्बर जैन पद्मासन मूर्ति है। यहां एक बड़ा भारी घण्टा बँधा हुआ है। वैष्णव यात्री इसे गुरुदत्तात्रय का स्थान कहकर पूजते हैं और मुसलमान मदारशाह पीर का तकिया कहकर जियारत करते है। इस टोंकसे ५-७ सीढ़ियां उतरने पर सं ११०८ का एक लेख मिलता है। नीचे उतर कर वापिस दूसरी टोंक तक पाना होता है। यहां गोमुखी कुण्ड से दाहिनी ओर सहगाभ्रवन (सेसावन) को पाना होता है, जहां भ० नेमिनाथ ने वस्त्राभूषण त्याग कर दिगम्बरीय दीक्षा धारण की थी। यहां से नीचे धर्मशाला को जाते हैं। इस पर्वतराज से ७२ करोड़ मुनिजन मोक्ष पधारे हैं।
गिरिनार से उत्तर-पश्चिम की ओर से २० मील दूर 'ढंक' नामक स्थान है, जहाँ काठियावाड़ में प्राचीन दिगम्बर जैन प्रतिमा दर्शनीय है । जूनागढ़ से जेतलसर महसाना होते हुए तारगाहिल जाना चाहिए।
तारंगाजी तारंगा बड़ा ही सुन्दर निर्जन एकान्तस्थान है। स्टेशन से करीब ३-४ मील दूर है। इस पवित्र स्थान से वरदत्त आदि साढ़े तीन करोड़ मुनिराज मुक्त हुए हैं। तलहटी में एक कोट के भीतर मन्दिर और धर्मशाला बने हुए हैं, परन्तु स्टेशन की धर्मशाला में ठहरना सुविधाजनक है। पर्वत पर धर्मशाला के पास ही १३ प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर हैं, जिनमें कई वेदियों में ऊपर नीचे दि० प्रतिमायें विराजमान हैं। यहाँ पर सहस्रकूट जिनालय में ५२ चैत्यालयों की रचना अत्यन्त मनोहर है। यहां एक मन्दिर में श्री संभवनाथ जी की प्रत्यन्त प्राचीन प्रतिमा महा मनोज्ञ है।