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ग्रन्थ भी है। यहाँ भी भट्टारकीय गद्दी रही है जिसे प्रत्येक वर्ण के लोग पूजते हैं । सूरत से बड़ोदा जाय ।
बड़ौदा बड़ौदा में केवल दो दि जैन मन्दिर हैं। नईपोल के पास जैन धर्मशाला है। राजमहल आदि यहाँ कई दर्शनीय स्थान हैं। कलाभवन हस्तकला दर्शनीय है और ओरियंटल लायब्रेरी में प्राचीन साहित्य का अच्छा संग्रह है। यहाँ से पावागढ़ लारियों में ही जाना चाहिए। रेल से बड़ौदा-रतलाम लाइन पर चापानेर रोड उतरें वहाँ से प्राधा मील चापानेर में यह क्षेत्र है।
पावागढ़ सिद्धक्षेत्र पावागढ़ में तीन धर्मशाला हैं। यहां दो मन्दिर हैं। एक सुन्दर मानस्तम्भ हालमें ही बना है, यहां पर मेला माघ सुदी १३ से तीन दिन तक सं० १८३८ से भरता है। धर्मशाला के पीछे ही पर्वत पर चढ़ने का मार्ग कंकरीला होने के कारण दुर्गम है। लगभग छै मील की चढ़ाई है, जिसमें कोटके सात बड़े-बड़े दरवाजे पार करने पड़ते हैं। पांचवें दरवाजे के बाद छटवें द्वार के बाहर भीत में एक दिगम्बर जैन प्रतिमा पद्मासन १।। फीट ऊँची उकेरी हुई लगी बताई गई थी, जिस पर सं० ११३४ लिखा था, परन्तु हमें वह देखने को नहीं मिली । अन्तिम 'नगरखाना दरवाजा' पार करने पर दि. जैनियों के मन्दिर प्रारम्भ होते हैं, जो लाखों रुपयों की लागत के कुल पांच है । मध्यकाल में पावागढ़ पर अहमदाबाद के बादशाह मुहम्मद बेगड़ा का अधिकार हो गया था। उसने इन मन्दिरों की सं० १५४० में बहुत कुछ नष्ट भ्रष्ट कर दिया था। बहतेरे मन्दिर अब भी टूटे पड़े हैं। कतिपय मन्दिरों के शिखर फिर से बनवा दिये गए हैं। इसे सिद्धक्षेत्र कहते हैं। यहाँ से श्री रामचन्द्र जी के पुत्र लव-कुश और लाट देश का राजा पाँच करोड़ मुनियों केसाथ मोक्ष गए बतायें जाते हैं । ऊपरतीन मंदिरों का समूह