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[७१] कारीगरी के हैं। यद्यपि आज उनमें प्रतिमा विराजमान नही है तो भी उनके दर्शन मात्र से वन्यभाव पैदा होते हैं । इनमें 'कमलवस्ती' अपूर्व है, जिसकी छत से लटकते हुए पांच कमल छत्र शिल्पकारी की प्राश्चर्यकारी रचना है।
.. स्तवनिधि (अतिशय क्षेत्र)
यह दक्षिण प्रांत का अतिश्य क्षेत्र हैं। बेलगांव से ३८ मील और निपाणी से तीन मील दूर है। यहाँ एक परकोटे में ४ मंदिर एक मानस्तम्भ है और एक क्षेत्रपाल का मन्दिर है । यह मन्दिर ११०० वर्ष प्राचीन है। यहां मूलसंघ देशीयगण पुस्तक गच्छ के आचार्य वीर नन्दी सिद्धान्त चक्रवर्ती का एक लेख है जो आचारसार के कर्ता जान पड़ते हैं। जिनका समय शक सं १०७५ है ।+ इसे किसने और कब प्रचारित किया, यह कुछ ज्ञात नही होता। यहां लोग क्षेत्रपाल के मंदिर में मनौती मनाने के लिए आते रहते
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इलोरा गुफा मन्दिर मनमाड़ जङ्कशन से लारी में इलोरा जाना चाहिए। इलोरा का प्राचीन नाम इलापुर है। और वह मान्यखेट (मलखेड़) के राष्ट्रकूट (राठौरवंश) राजाओं की राजधानी रही है। यहाँ पर . पहाड़ को खोदकर बड़े-बड़े मन्दिर बनवाये गये हैं। वैष्णव मंदिर में बड़ा 'कैलाश मन्दिर' अद्भूत है। बौद्धों के भी कई मन्दिर हैं। नं० ३० से नं० ६४ तक के मंदिर जैनियों के हैं। इनमें 'छोटाकैलाश' शिल्पकारी का अद्भूत नमूना है । 'इन्द्रगुफा' और 'जगन्नाथ गुफा' मंदिर दो मंजिले दर्शनीय है। ऊपर चढ़कर पहाड़ की चोटी पर एक चैत्यालय है, जिसमें भ० पार्श्वनाथ की शक सम्वत् ११५० की प्रतिष्ठा की हुई प्रतिमा विराजमान हैं। यहां + देखो, जैन सिद्धान्त भास्कर भा० ११ कि०२ .