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[७०] दर्शनीय मंदिर मिला है। यह प्रतिमा १०८ सपंफण मंडित पद्मासन है।
कोल्हापुर और बेलगांव कि यदि इस पोर के प्रमुख स्थानों को देखना इष्ट हो, तो कोल्हापुर और बेलगाम भी होता आवे । कोल्हापुर का प्राचीन नाम क्षुल्लकपुर हैं। यह शिलाहार वंश के राजारों की राजधानी था, जिनमें कई राजा जैनधर्म के भक्त थे। राजा गण्डरादित्य के सेनापति निम्बदेव ने यहाँ पर एक अतीव सुन्दर जिन मन्दिर निर्माण कराया था। आज वह शेषशाई विष्णु का मन्दिर बना हुआ है। वहां का प्रसिद्ध 'महालक्ष्मी मन्दिर' भी एक समय जैन मन्दिर था। इस समय वहाँ ४ शिखरबन्द जिनमन्दिर और ३ चैत्यालय दर्शनीय हैं । श्राविकाश्रम बोर्डिंगहाऊस आदि जैन संस्थायें भी हैं।
बेलगाँव प्राचीन वेणुग्राम है। इसे रदृवंश के लक्ष्मीदेव नामक राजा ने अपनी राजधानी बनाया था। रट्टवंश के सब राजा जैनी थे। जनश्रुति है कि एक दफा माननीय मुनिसंघ आया था। राजा रात को ही वन्दना करने गया। लौटते हुए इत्तफाक से किसी सेवक की मशाल की लौ बाँस के झरमुट में लग गई जिसने वनाग्नि का रुप धारण कर लिया। मुनिसंघ ध्यान में लीन था, वह भी उसी वनाग्नि में अन्त गति को प्राप्त हुआ। राजा और प्रजा ने जब सुना तो उन्हें बड़ा पश्चाताप हुआ। प्रायश्चितरुप उन्होंने किले के अन्दर १०८ भव्य जिन मन्दिर बनवाये। इस प्रकार बेलगांव एक अतिशय क्षेत्र प्रमाणित होता है। इस समय भी वहां चार दि. जैन मन्दिर दर्शनीय हैं। किले के १०८ मंदिरों को आसिफ खां नामक मुसलमान शासक ने तुड़वा डाला था। तो भी उनमें से तीन मन्दिर किसी तरह अब शेष रहे हैं, जो अनूठी