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[.६६] भूतियाँ लाई जाकर यहाँ विराजमान की गई थी। दो सौ वर्ष पूर्व संधि महामुनि और पण्डित महामुनि ने ब्राह्मण से वाद करके जैनधर्म की प्रभावना की थी। तभी से यह दि० जैनियों का विद्यापीठ है-एक दि० जैन पाठशाला यहाँ बहुत दिनों से चलती है।
श्री क्षेत्र पोन्नूर पोन्नूर क्षेत्र तिण्डिवनम् से करीब २५ मील दूर एक पहाड़ की तलहटी में है । वहां पर पहले सकल लोकाचार्य वर्द्धन राजनारायण शम्भूवरायर नामक जैनी राजा शासन करते थे । शक सं० १२६८ में पहाड़ पर उसी राजा के राज्यकाल में एक विशाल मंदिर बनवाया गया था, जिसमें श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा विराजमान की गई थी। पहाड़ पर श्री एलाचार्य जी भ० की चरण पादुकायें हैं । यह 'तिरुकुरुल' नामकतामिलग्रन्थ के रचयिता बताये जाते हैं । अतः यह स्थान भगवान् कुन्दकुन्दस्वामी की तपोभूमि है, क्योंकि उनका अपरनाम एलाचार्य था। उनकी स्मृति में प्रति रविवार को पहाड़ पर यात्रा होती है, जिसमें करीब ५०० आदमी शामिल होते हैं। यहां का प्रबन्ध पोन्नूर के दि० जैन पंच करते हैं। उन्हें इस मेले में धर्म प्रचार का प्रबन्ध करना चाहिये । पोन्नूर में एक जैन मंदिर, धर्मशाला और पाठशाला भी है। यहां का जलवायु अच्छा है। वापिस तिण्डिवनम् पावे। वहां से चित्तम्बूर १० मील वायव्यकोण में जावे।
श्री क्षेत्र सितामूर (चित्तम्बूर ) चित्तम्बूर प्राचीन जैन स्थान है । अब भी वहां दो दि जैन मंदिर अति मनोज्ञ और शोभनीक हैं, जिनमें से एक १५०० वर्षों का प्राचीन हैं। श्री संधि महामुनि मोर पंडित महामुनि ने यहां प्राकर यह मन्दिर बनवाया और मठ स्थापित किया था। माज
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