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________________ [ ४७ ] हैं, जिसमें एक विशाल शिवाल्य दर्शनीय है। मार्ग में घने वृक्षों का जंगल है। इन पहाड़ियों के बीच में एक तंग घाटी है। यहाँ पत्थर काटकर बहुत सी गुफायें और मंदिर बनाये गये हैं । जो ईस्वी सन् से करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले से पाँच सौ वर्ष बाद तक के बने हुए हैं। यह स्थान अत्यन्त प्राचीन और महत्वपूर्ण है । 'उदयगिरि'- पहाड़ी का प्राचीन नाम कुमारी पर्वत है। इस पर्वत पर से ही भगवान् महावीर ने आकर उड़ीसा निवासियों को अपनी अमृतवाणी का रस पिलाया था। अन्तिम तीर्थङ्कर का समवरण पाने कारण यह स्थान अतिशयक्षेत्र है। उदयगिरि ११० फुट ऊँचा है। इसके कटिस्थान में पत्थरों को काटकर कई गुफायें और मन्दिर बनाये गए हैं। पहले 'अलकापुरी' गुफा मिलती है, जिसके द्वार पर हाथियों के चिन्ह बने हैं. फिर जयविजय' गुफा है उसके द्वार पर इन्द्र बने हैं । अागे 'रानी गुफा है' जो देखने योग्य है । इस गुफा में नीचे ऊपर बहुत-सी ध्यानयाग्य अन्तर गुफायें हैं। आगे चलने पर 'गनेशगुफा' मिलती है, जिसके बाहर पाषाण के दो हाथी बने हुए हैं। यहां से लौटने पर 'स्वर्गगुफा', 'मध्यगुफा' और 'पातालगुफा नामक गुफायें मिलती हैं । इन गुफाओं में चित्र भी बने हुए हैं और तीर्थङ्करों की प्रतिमायें भी हैं। पातालगुफा के ऊपर 'हाथीगुफा' १५ गज पश्चिमोत्तर है। यह वही प्रमुख गुफा है जो जैन सम्राट खारबेल के शिलालेख के कारण प्रसिद्ध है। खारबेल कलिंग देश के चक्रवर्ती राजा थे- उन्होंने भारत वर्ष की दिग्विजय की थी और मगध के राजा पुष्यमित्र को परास्त छत्र-भङ्गारादि चीजों के साथ 'कलिंग जिन ऋषभदेव' की.. वह प्राचीन मूर्ति वापस कलिङ्ग लाये थे, जिस नन्द सम्राट नाटलिपुत्र ले गये थे। इस प्राचीन मूर्ति को सम्राट खारवेल ने कुमारी पर्वत पर अर्हतप्रासाद बनवाकर विराजमान किया था। उन्होंने स्वयं एवं उनकी रानी ने इस पर्वत पर कई जिन मन्दिर
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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