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[४६ ] ही आत्माह्लाद में निमग्न हो जाता है। यहाँ विश्राम करके दर्शनपूजन सामायिक करके लौट आना चाहिए। रास्ते में बीस पंथी कोठी की ओर से जलपान का प्रबन्ध है। पर्वत समुद्र तल से ४४८० फीट ऊँचा है। इस पर्वतराज का प्रभाव अचित्य हैंकुछ भी थकावट नहीं मालूम होती है। नीचे मधुवन में लौटकर वहाँ के मन्दिरों के दर्शन करके भोजनादि करना चाहिए । मनुष्य जन्म पाने को सार्थकता तीर्थयात्रा करने में हैं और सम्मेदाचल की वंदना करके मनुष्य कृतार्थ हो जाता है। यहां की यात्रा करके वापस ईशरी (पारसनाथ) स्टेशन आवे और हावड़ा का टिकट लेकर कलकत्ता पहुँचे।
कलकत्ता कलकत्ता वंगाल की राजधानी और भारत का सबसे बड़ा शहर है। स्टेशन से एक मील की दूरी पर बड़ा बाजार में श्री दि० जैन भवन (धर्मशाला) सुन्दर और शहर के मध्य है। इसके पास ही कलकत्ते का मुख्य बाजार हरिसन रोड़ है। वहां (१) चावल पट्टी यहां के मन्दिर में अच्छा शास्त्र भंडार भी है। (२) पुरानी वाड़ी (३) लोअर चितपुर रोड़ (४) बेल गछिया में दर्शनीय दि० जैन मंदिर हैं । दर्शन-पूजन की श्रावकों को सुविधा है। राय बद्रीदास जी का श्वे. मंदिर भी अच्छी कारीगरी का है । कलकत्ते में कार्तिक सुदी १५ को दोनों सम्प्रदायों का सम्मिलित रथोत्सव होता है। अजायबघर में जैन मूर्तियां दर्शनीय हैं। खेद है कि यहां पर जैनियों की कोई प्रमुख सावंजनिक संस्था नहीं है, जिस से जैन धर्म की वास्तविक प्रभावना हो । यहां के देखने योग्य स्थान देखकर उदयगिरि खंडगिरि जावे, जिसके लिए भुवनेश्वर का टिकट लेवें।
खडगिरि-उदयगिरि भुवनेश्वर से पांच मील पश्चिम की ओर उदयगिरि और खंडगिरि नामक दो पहाड़ियाँ हैं । रास्ते मे भुवनेश्वर शहर पड़ता