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[६] पावापुर, चम्पापुर, आदि तीर्थ स्थान अर्हन्तादि के तप, केवल ज्ञानादि गुणों के उपजने के स्थान होने के कारण क्षेत्रमङ्गल हैं।+ एवं इन पवित्र क्षेत्रों का स्तवन और पूजन 'क्षेत्रस्तवन' है ।* _____ तीर्थस्थल के दर्शन होते ही हृदय में पवित्र पाह्लाद की लहर दौड़ती है, हृदय भक्ति से भर जाता है। यात्री उस पुण्यभूमि को देखते ही मस्तक नमा देता हैं, और अपने पथ को शोधता हुआ एवं उस तीर्थ की पवित्र प्रसिद्धि का गुणगान मधुर स्वर लहरी से करता हुआ आगे बढ़ता है। जिन मन्दिर में जाकर वह जिन दर्शन करता है और फिर सुविधानुसार अष्टद्रव्यों से जिनेन्द्र का
और तीर्थका पूजन करता है ! X तीनों समय सामायिक वन्दना करता है। शास्त्रस्वाध्याय और धर्मचर्चा करने में निरत रहता है। बार बार जाकर पर्वतादि क्षेत्र की वन्दना करता है और + क्षेत्रमंगलमूर्जयन्तादिकमर्हदादीनां निष्क्रमण केवल ज्ञानादि गुणोत्पत्तिस्थानम्'
-श्रीगोमट्टसार पृ० २। *'पर कैलाश, संमेदाचल, ऊर्जयन्त ( गिरिनार ), पावापुर, चम्मापुरादि निर्वाणक्षेत्रनिका तथा समवशरण में धर्मोपदेश के क्षेत्र का स्तवन मो क्षेत्र स्तवन है।'
श्रीरत्नकरण्ड श्रावकाचार (बम्बई) पृ० १६५ । x'जिणजम्मणणिरुखावणे-णाणुप्पत्तीय तित्थ चिण्हे सु ।
णिसिहीसु खेत पूजा, पुव्यविहाणेण कायव्वा ।।४५२।।' अर्थ : -जिनभगवान की जन्मभूमि, दीक्षाभूमि, केवलज्ञान उत्पन्न
होने की भूमि और तीर्थचिन्ह स्थान और निषधिका अर्थात् निर्वाण-भूमियों में पूर्वोक्त कल्याणक स्थानों में पूर्व कही हुई विधि के अनुसार ( जल. चन्दनादि से ) पूजा करना चाहिए इसका नाम क्षेत्र पूजा है। .
-वसुनन्दि श्रावकाचार पृ० १३०