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वैदिक संस्कृतिको श्रमण-संस्कृतिकी देन
[दिन और रातकी तरह अच्छाई और बुराईका, पुण्य और पापका, विचार-विभिन्नताका साथ सदासे हो रहा है । इतिहासके पन्नोंसे जहा यह स्पष्ट होता है कि श्रमणसस्कृतिका अस्तित्व भारतमें प्राचीनतम कालसे है वहा यह भी स्पष्ट होता है कि उसका विरोध भी बहुत पुराना है। पुराणोंके अनुसार भगवान् ऋषभदेवके समयसे ही उनके विरोधी भी उत्पन्न हो गये थे। इतने दीर्घकालसे साथ-साथ रहनेके कारण दोनोने ही एक-दूसरेसे बहुत कुछ लिया-दिया है। श्रमण-सस्कृतिने श्रमणेतर-सस्कृतिको जो कुछ दिया उसमें प्रमुख हैं अहिंसा, मूर्तिपूजा, अध्यात्म आदि । ]
जिस वर्ग, समाज या राष्ट्रकी कला, साहित्य, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, पहनाव-ओढाव, धर्म-नीति, प्रत-पर्व आदि प्रवृत्तिया जिस विचार और आचारसे अनुप्राणित होती हैं या की जाती हैं वे उस वर्ग, समाज या राष्ट्रके उस विचार और आचार मूलक मानी जाती है। ऐसी प्रवृत्तिया ही सस्कृति कही जाती है।
भारत एक विशाल देश है। इसके भिन्न-भिन्न भागोमें सदासे ही भिन्न-भिन्न विचार और आचार रहे हैं तथा आज भी ऐसा ही है। इसलिए यहा कभी एक, व्यापक और सर्वग्राह्य सस्कृति रही हो, यह सभव नही और न ज्ञात ही है। हाँ, इतना अवश्य जान पड़ता है कि दूर अतीतमें दो सस्कृतियोंका प्राधान्य अवश्य रहा है । ये दो सस्कृतिया है-१ वैदिक और-२ अवैदिक । वैदिक सस्कृतिका आधार वेदानुसारी आचार-विचार है और अवैदिक सस्कृतिका मूल अवेदानुसारी अर्थात् पुरुष-विशेषका अनुभवाश्रित आचार-विचार है। ये दोनो सस्कृतिया जहां परस्परमें सघर्षशील रही है वहां वे परस्पर प्रभावित भी होती रही हैं।
वैदिक (ब्राह्मण) सस्कृति
१ वैदिक (ब्राह्मण) सस्कृतिमें वेदको ही सर्वोपरि मानकर वेदानुयायियोकी सारी प्रवृत्तिया तदनुसारी रही हैं। इस सस्कृतिमें वेदप्रतिपादित यज्ञोका प्राधान्य रहा है और उनमें अनेक प्रकारकी हिंसाको विधेय स्वीकार किया गया है । 'याज्ञिको हिंसा हिंसा न भवति' कहकर उस हिंसाका विधान करके उसे खुल्लम-खुल्ला छूट दे दी गयी है। उसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर कालमें मास-भक्षण, मद्यपान और मैथन-सेवन जैसी निन्द्य प्रवृत्तिया भी आ घुसी और उनमें दोपाभावका प्रतिपादन किया गया
'न मास-भक्षणे दोषो, न मद्ये न च मैथुने । प्रवृत्तिरेषा भूताना, निवृत्तिस्तु महाफला ॥
-मनुस्मृति ।
इतना ही नही, उन्हें जीवोकी प्रवृत्ति (स्वभाव) वतलाकर उन्हें स्वच्छन्द छोड दिया गया है-उनपर कोई नियन्त्रण नही रखा । फलत उनसे निवृत्ति होना दुस्साध्य बतलाया है। सोमयशमें एक वर्षकी लाल
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