________________
को पालन करनेके लिए वह उक्त अहिंसा आदि व्रतोको अणुव्रतके रूपमें ग्रहण करता है और इन स्वीकृत व्रतोंकी वृद्धिके लिए अन्य सात व्रतोको भी धारण करता है, जो इस प्रकार है
(१) अपने कार्य-क्षेत्रकी गमनागमनकी मर्यादा निश्चित कर लेना 'विग्व्रत' है। यह व्रत जीवनभरके लिए ग्रहण किया जाता है । इस व्रतका प्रयोजन इच्छाओकी सीमा बाधना है ।
(२) दिग्वतको मर्यादाके भीतर ही उसे कुछ काल और क्षेत्रके लिए सीमित कर लेना-आने-जानेके क्षेत्रको कम कर लेना देशवत है।
(३) तीसरा अनर्थवण्डवत है । इसमें व्यर्थके कार्यों और प्रवृत्तियोका त्याग किया जाता है । ये तीनो व्रत अणुव्रतोके पोषक एवं वर्धक होनेसे गुणव्रत कहे जाते हैं। (४) सामायिकमें आत्म-विचार किया जाता है और खोटे विकल्पोका त्याग होता है।
(५) प्रोषधोपचासमें उपवास द्वारा आत्मशक्तिका विकास एव सहनशीलताका अभ्यास किया जाता है।
(६) भोगोपभोगपरिमाणमें दैनिक भोगो और उपभोगोकी वस्तुओका परिमाण किया जाता है । जो वस्तु एक बार ही भोगी जाती है वह भोग तथा जो वार-बार भोगने में आती है वह उपभोग है। जैसे भोजन, पान आदि एक बार भोगनेमें आनेसे भोग वस्तुएं हैं और वस्त्र, वाहन आदि बार-बार भोगने में आनेसे उपभोग वस्तुएँ हैं। इन दोनो ही प्रकारकी वस्तुओका प्रतिदिन नियम लेना भोगोपभोगपरिमाण व्रत है।
(७) अतिथिसविभागमें सुपात्रोको विद्या, औषधि, भोजन और सुरक्षाका दान दिया जाता है, जिससे व्यक्तिका उदारतागुण प्रकट होता है। तथा इनके अनुपालनसे साधु बननेकी शिक्षा (दिशा और प्रेरणा) मिलती है।
इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह सामाजिक जीवन-क्षेत्रमें हो या राष्ट्रीय, इन १२ व्रतोका सर+ लतासे पालन कर सकता है और अपने जीवनको सुखी एव शान्तिपूर्ण बना सकता है।
MMI