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________________ लयमें खुदा हुआ है । यह लेख इस समय मेरे पास भी है। यह अशुद्ध अधिक है । कुन्दकुन्दाचार्यकी आम्नामयमें यश कीर्ति, ललितकीर्ति, धर्मकीर्ति (रामदेवपुराणके कर्ता), पद्मकीर्ति, सुरेन्द्रकीति और उनके शिष्य ब्रह्म हुए। सुरेन्द्रकीतिके शिष्य इन ब्रह्मने वहांको मनोज्ञ महावीर स्वामीकी जीर्ण मूर्तिको देखकर द्रव्य मांग मांग (चन्दा) करके उसका जीर्णोद्धार कराया तथा चैत्यालयका उद्धार छत्रसालने कराया। इन सब बातोका शिलालेखमें उल्लेख है। साथमें छत्रसालको बडा धर्मात्मा प्रकट किया गया है । अस्तु । इससे यही विदित होता है कि वहाँ १५वी से १७वी शताब्दी तक रहे भट्टारकी प्रभुत्वमें कोई महावीर स्वामीका मन्दिर निर्माण कराया होगा। उसके जीर्ण होनेपर करीब १०० वर्ष वाद वि० स० १७५७ में उसका उद्धार किया गया । चुकि छत्रसालको वहांके भट्टारककी कृपा और उनके मन्त्रविद्याके प्रभावसे यवन-सेनापर विजय प्राप्त हुई थी। इसलिए वह स्थान तबसे अतिशय क्षेत्र कहा जाने लगा होगा। प्रभाचन्द्र (११वी शती) और श्रुतसागर (१५वी-१६वी शती) के मध्यमें बने प्राकृत निर्वाणकाण्डके आधारसे रचे गये भैया भगवती दास (स० १७४१) के भाषा-निर्वाणकाडमें जिन सिद्ध व अतिशय क्षेत्रोकी परिगणना की गयी है उनमें भी कुडलपुरको सिद्ध क्षेत्र या अतिशय क्षेत्रके रूपमें परिगणित नही किया गया। इससे यही प्रतीत होता है कि वह सिद्ध क्षेत्र तो नही है-अतिशय क्षेत्र भी १५वी १६वी शताब्दीके बाद प्रसिद्ध होना चाहिए । १ यह शिलालेख भी प० परमानन्दजो शास्त्रीसे प्राप्त हुआ है, जिसके लिए उनका आभारी हूँ। -२८१ - न-32
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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