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________________ एक तालाब है । इस तालाबके कमल ही मदनकोतिको पद्य २१ में उल्लिखित पुष्पनिचय विवक्षित हुए हैउनसे भक्तजन उनकी पूजा करते होगे। ७. विपुलगिरि राजगृहके निकट विपुलगिरि, वैभागिरि, कुण्डलगिरि अथवा पाण्डकगिरि, ऋपिगिरि और बलाहकगिरि थे पांच पहाड स्थित है । बौद्ध-ग्रन्थोमें इनके वेपुल्ल, वेभार, पाण्डव, इसिगिलि और गिज्झकूट ये नाम पाये जाते हैं । इन पांच पहाडोका जैनग्रन्थोमें विशेष महत्त्व वर्णित है। इनपर अनेक ऋषि-मुनियोने तपश्चर्या कर मोक्ष-साधन किया है । आचार्य पूज्यपादने इन्हे सिद्धक्षेत्र बतलाया है और लिखा है कि इन पहाडोंसे अनेक साधुओने कर्म-मल नशाकर सुगति प्राप्त की है । यथा द्रोणीमति प्रवरकुण्डल-मेढ़के च वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे। ऋष्यद्रिके च विपलाद्रि-बलाहके च ये साधवो हतमला सुगति प्रयाता स्थानानि तानि जगति प्रथितान्यभूवन्।-नि० भ० २९, ३० । इन पाँचोमें 'विपुलगिरि'का तो और भी ज्यादा महत्त्व है, क्योकि उसपर अन्तिम तीर्थंकर वर्धमानमहावीरका अनेकवार समवशरण भी आया है और वहांसे उन्होने मुमुक्षुओको मोक्षमार्गका उपदेश किया है। मदनकीतिने पद्य ३०में यहाँके प्रभावपूर्ण जिनबिम्बका उल्लेख किया है। जान पडता है उसका अतिशय लोकविश्रुत था। सम्भव है जो विपुलगिरिपर प्राचीन जिनमन्दिर बना हुआ है और जो आज खण्डहरके रूपमें वहां मौजूद है उसीमें उल्लिखित जिनबिम्ब रहा होगा । अब यह खण्डहर श्वेताम्बरसमाजके अधिकारमें है । इसकी खुदाई होनेपर जैन पुरातत्त्वकी पर्याप्त सामग्री मिलनेकी सम्भावना है। ८ विन्ध्यगिरि आचार्य पूज्यपादने 'विन्ध्यगिरि'को सिद्धक्षेत्र कहा है और वहाँसे अनेक साधुओके मोक्ष प्राप्त करनेका समुल्लेख किया है। यह विन्ध्यगिरि विन्ध्याचल जान पडता है जो मध्यप्रान्तमे रेवा (नर्मदा) के किनारेकिनारे बहुत दूर तक पाया जाता है और जिसकी कुछ छोटी-छोटी पहाडियां आस-पास अवस्थित हैं। मदनकीतिने पद्य ३२ में इसी विन्ध्यगिरि अथवा विन्ध्याचलके जिनमन्दिरोका, निर्देश किया प्रतीत होता है । झाँसीके पास एक देवगढ नामक स्थान है जो एक सुन्दर पहाडीपर स्थित है। वहीं विक्रमकी १०वी शताब्दीके आस-पास बहुत मन्दिर बने है। ये मन्दिर शिल्पकला तथा प्राचीन कारीगरीकी दृष्टिसे उल्लेखनीय हैं। भारत सरकारके पुरातत्त्व विभागको यहाँसे २०० के लगभग शिलालेख प्राप्त हुए है। उनमें ६० पर तो समय भी अङ्कित है। सबसे पुराना लेख वि० स० ९१९ का है और अर्वाचीन स० १८७६ का है । यह भी हो सकता है कि पूज्यपाद और मदनकीतिन जिस विन्ध्यगिरिकी सूचना की है वह मैसूर प्रान्तके हासन जिलेके वेन्नरायपाटन तालुकेमें पायी जानेवाली विन्ध्यगिरि और चन्द्रगिरि नामकी दो सुन्दर पहाडियोमेंसे पहली पहाडी विन्ध्यगिरि हो। यह पहाडी 'दोड्डबेट्ट' अर्थात वडी पहाडीके नामसे प्रसिद्ध है। इसपर १ 'विन्ध्ये च पौदनपुरे वषदीपके च'-नि० भ० । २ कल्याणकुमार शशिकृत 'देवगढ' नामक पुस्तककी प्रस्तावना । ३, जनशिलालेखसग्रह' प्रस्तावना पृ० २ । - २३१
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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