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________________ प्रतिसन्धाय धर्ममुदाहरणे च प्रतिसन्धाय तस्य साधनतावचन हेतु " कथन द्वारा साध्यके साथ नियत सम्बन्धीको हेतु कहा है । अत जिस प्रकार उदाहरणके क्षेत्रमे उनकी देन है उसी प्रकार हेतुके क्षेत्र में भी । अनुमानको प्रामाणिकता या सत्यता लिंग-लिंगोके सम्बन्धपर आश्रित है । वह सम्बन्ध नियत साहचर्यरूप है । सूत्रकार गौतम उसके विषयमे मौन हैं। पर भाष्यकारने उसका स्पष्ट निर्देश किया है । उन्होने लिगदर्शन और लिंगस्मृतिके अतिरिक्त लिंग ( हेतु ) और लिंगी ( हेतुमान् - साध्य ) के सम्बन्ध दर्शनको भी अनुमिति में आवश्यक बतला कर उस सम्बन्धके मर्मका उद्घाटन किया है । उसका मत है कि सम्बद्ध हेतु तथा हेतुमान्‌के मिलनेसे हेतुस्मृतिका अभिसम्बन्ध होता है और स्मृति एव लिंगदर्शनसे अप्रत्यक्ष (अनुमेय ) अर्थका अनुमान होता है । भाष्यकारके इस प्रतिपादन से प्रतीत होता है कि उन्होने 'सम्बन्ध' शब्दसे व्याप्ति सम्बन्धका और 'लिगलगिनी' सम्बद्धयोदर्शनम् पदोसे उस व्याप्ति सम्बन्धके ग्राहक भूयोदर्शन या सहचारदर्शनका संकेत किया है जिसका उत्तरवर्ती आचार्योंने स्पष्ट कथन किया तथा उसे महत्त्व दिया है । 3 वस्तुत लिंगलिंगीको सम्बद्ध देखनेका नाम ही सहचारदर्शन या भूयोदर्शन है, जिसे व्याप्तिग्रहण में प्रयोजक माना गया है । अत वात्स्यायन के मतसे अनुमानकी कारण सामग्री केवल प्रत्यक्ष (लिंगदर्शन) ही नही है, किन्तु लिंगदर्शन, लिंग-लिंगीसम्बन्घदर्शन और तत्सम्बन्धस्मृति ये तीनो हैं । तथा सम्बन्ध ( व्याप्ति) का ज्ञान उन्होंने प्रत्यक्ष द्वारा प्रतिपादन किया है, जिसका अनुसरण उत्तरवर्ती तार्किकोने भी किया है । ४ वात्स्यायनकी" एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि और उल्लेख्य है । उन्होने अनुमानपरीक्षा प्रकरणमे त्रिविध अनुमानोके मिथ्यात्वकी आशका प्रस्तुत कर उनकी सत्यताकी सिद्धिके लिए कई प्रकारसे विचार किया है । आपत्तिकार कहता है कि 'ऊपरके प्रदेशमें वर्षा हुई है, क्योकि नदीमें बाढ आयी हैं, ६ वर्षा होगी, क्योंकि चीटियाँ अण्डे लेकर जा रही है ये दोनो अनुमान सदोष हैं, क्योकि कही नदीकी धारामें रुकावट होनेपर भी नदी वाढ आ सकती है। इसी प्रकार चीटियोका अण्डो सहित सचार चीटियोके बिलके नष्ट होनेपर भी हो सकता है । इसी तरह सामान्यतोदृष्ट अनुमानका उदाहरण - 'मोर बोल रहे हैं, अत वर्षा होगी' - भी मिथ्यानुमान है, क्योकि पुरुष भी परिहास या आजीविका के लिए मोरकी बोली बोल सकता है। इतना ही नही मोरके बोलनेपर भी वर्षा नही हो सकती, क्योकि वर्षा और मोरके बोलने में कोई कार्य-कारण सम्वन्ध नही है । वात्स्यायन' इन समस्त आपत्तियो (व्यभिचार - शकाओ) का निराकरण करते हुए कहते हैं कि उक्त आपत्तियाँ ठीक नही हैं, क्योकि उक्त अनुमान नही है, अनुमानाभास हैं और अनुमानाभासोको अनुमान समझ लिया गया है। तथ्य यह है कि विशिष्ट हेतु ही विशिष्ट साध्यका अनुमापक होता - १ न्यायभा० ११११३४, ३५, पृष्ठ ४८, ४९ । २ लिंगलिंगिनो सम्बन्धदर्शन लिंगदर्शन चाभिसम्बद्ध्यते । लिंगलिंगिनो सम्बद्धयोर्दर्शनेन लिंग-स्मृतिरभिसम्बद्धयते । स्मृत्या लिंगदर्शनेन चाप्रत्यक्षोऽर्थोऽनुमीयते । - न्यायभा० १1१1५, पृ० २१ । ३ यथास्व भूयोदर्शनसहायानि स्वाभाविकसम्बन्धग्रहणे प्रमाणान्युन्नेतव्यानि -- वाचस्पति, न्याय० ता० टी ० १ १५, पृ० १६७ । ४ उद्योतकर, न्यायवा० १।११५, पृ० ४४ । न्यायवा० ता० टी० ११११५, पृ० १६७ । उदयन, न्यायवा० ता० टी० परिशु० १ ११५, पृ० ७०१ । गगेश, तत्त्वचिन्तामणि जागदी० पृ० ३७८, आदि । ५ ६ ७ न्यायभा० २।१।३८, पृ० ११४ । ८ न्यायभा० २ ११३८, पृष्ठ ११४ । ९ वही, २।१।३९, पृष्ठ ११४, ११५ । - १२५ -
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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