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. . . . जैन-दर्शन
अाधार के लिए इसे किसी अन्य की आवश्यकता नहीं रहती। यह अप्रतिष्ठित और अनाश्रित है।' इस तत्त्व का ज्ञान तत्त्वमय होने पर ही हो सकता है, तत्त्व से अलग रहने पर नहीं। इसीलिये कहा गया है कि ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म ही हो जाता हैंब्रह्मविद् ब्रह्म एव भवति । उस अवस्था में ज्ञाता और ज्ञेय का भेद नहीं रहता। यथार्थवाद :
यह स्पष्ट ही है कि यथार्थवाद आदर्शवाद की तरह जड़ तत्त्व का अपलाप नहीं करता। चार्वाक-जैसे कुछ यथार्थवादी दर्शन ऐसे तो मिल सकते हैं, जो स्वतन्त्र चेतन तत्त्व न मानते हों, किन्तु ऐसा कोई भी यथार्थवादी दर्शन न मिलेगा, जो जड़ तत्त्व का अपलाप करता हो। तात्पर्य यह है कि यथार्थवादी दृष्टिकोण के अनुसार जड़तत्व असत् नहीं है, अपितु सत् है । भौतिक तत्त्व आभास नहीं अपितु यथार्थ है । इस भौतिक या जड़ तत्व का आधार कोई चेतन तत्त्व या विचारधारा नहीं है, अपितु यह स्वयं अपने आप में अपना आधार है । इसका कोई अन्य प्राध्यात्मिक पाश्रय नहीं है, अपितु यह स्वाश्रित है-स्वप्रतिष्ठित है । ___अब प्रश्न यह है कि क्या सचमुच जड़ या भौतिक तत्त्व है ? जिसे मैं गुलाब का फूल समझ रहा हूँ, या गुलाब के फूल के रूप में देख रहा हूँ, क्या वह सचमुच कोई ऐसी चीज है, जो मेरे ज्ञान से भिन्न स्वतन्त्र जड़ पदार्थ है ? जिस समय मैं उसे नहीं देखता हूँ, क्या उस समय भी वह फल उसी रूप में मौजूद है ?. क्या वह फूल वास्तव में फुल रूप से सत्य है, या केवल मेरी कल्पना की उत्पत्ति ही है, जिसका स्वप्न के पदार्थ की तरह वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है ? उसका प्राधार सार्वत्रिक चेतना है, या वह स्वयं अपना आधार है ? यथार्थवाद इन सव प्रश्नों को हल करने का प्रयत्न करता है। उसकी दृष्टि में गुलाब के फूल की उसी तरह स्वतन्त्र सत्ता है, जिस १- 'अप्रतिष्ठितोऽनाश्रितो भूमा क्वचिदपि'
~~छान्दोग्य, ७ । २४ । १ ।