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वन, जीवन श्रीर जगत्
(Reality) के लिए यह आवश्यक है कि वह सम्बन्ध-निरपेक्ष (None-relational) हो, ऐसा कह कर वो डले ने यह सिद्ध किया कि सार्वत्रिक 'अनुभव' हो अन्तिम तत्त्व है। इस 'अनुभव' के भीतर बुद्धि, वेदना और इच्छा तीनों रहते हैं । ग्रपनी प्रसिद्ध कृति ग्रपियरेन्स गुड रियलिटी (Appearance and Reality) में इस विषय पर बले ने बहुत प्रच्छा प्रकाश डाला है । हमारी साधारण बुद्धि को किस प्रकार श्रनेक विप्रतिपत्तियों का सामना करना पड़ता है, इसका बहुत सुन्दर चित्रण किया गया है । उसमें यही सिद्ध किया गया है कि निरपेक्ष अन्तिम सत्य का ग्रह हमारी सामान्य बुद्धि से बाहर की चीज है । वह मत्यनीत होते हुए प्रत्यक्ष अनुभव ग्रथवा साक्षात्कार का विषय है | वृद्धि की सारी विप्रतिपत्ति वहाँ विलीन हो जाती है । अथवा यो कहिए कि हमारी साधारण बुद्धि, जो कि विप्रतिपत्ति से परिपूर्ण है, यहां इस रूप में नहीं रहती । उस दशा मे वह तत्त्व के साथ एकरूप हो जाती है । जगत् के पदार्थ तभी तक श्राभासरूप प्रतीत होते हैं जब तक कि उनका ज्ञान, अनुभव या ग्रहण सामान्य बुद्धि द्वारा होता है | इस प्रकार की प्रतीति अपने सीमित रूप में 'ग्राभान' कही जाती है । इस प्रकार का साभास माया या भ्रम नहीं है, श्रपितु नीमित एवं सापेक्ष सत्य है। उसे हम पूर्ण सत्य अथवा तत्त्व नहीं कह सकते । पूर्ण सत्य निरपेक्ष एवं असीम होता है, और वही सत्य अन्तिम तत्त्व है । इस करके मतानुसार तत्व के अनेक स्तर या श्रम (Degrees ) होते है। मिमनिरपेक्ष एवं पूर्ण होता है और वही प्रतिन
तत्व है।
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बीनांकेट नेशने की पद्धति का अनुसरण करते हुए तत्त्व को तार्किक एवं कि नींव पर गड़ा दिया। उसने बौद्धिक शक्ति पर विशेष जी दिया। होहुए भी वाय जगत् की नत्ता का नही किया | उसने कहा कि विचार या तर्क का सार मानसिक पल मे नही पत वस्तु में है। यदि हम यह कहे
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