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मं, पणन और विमान
शक्ति और श्रद्धापूर्ण यावरण के भेद को समाप्त करना है। यह ठीक है कि धर्म और दर्शन के कुछ विषय सामान्य हैं । ईश्वर, गुनभय न्यादि अनेक प्रश्न दोनों के सामने आते हैं। इतना होते हुए भी दोनों की पद्धति में बहत अन्तर है। एक धार्मिक व्यक्ति ईश्वर प, गम्बन्ध में जिन ढंग का व्यवहार करता है, एक दार्शनिक वैसा नहीं कर माता । धार्मिक व्यक्ति का श्रद्धापूर्ण पाचरण दर्शनशास्त्री को विवश नही कर सकता कि वह भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास गरे । एक दायनिक की तक-शक्ति एक श्रद्धालु धार्मिक को अपने पध में नही भिगा नाती । धर्म और दर्शन में वास अन्तर यह है कि धर्म में प्राचरा या व्यवहार प्रधान होता है और सिद्धान्त या शान गोगा होता है। धर्म की दृष्टि में किया का जो मूल्य होता है, सानका घर मूल्य नहीं होता । इसके विपरीत दर्शन में ज्ञान का मुरूप अधिक होता है और प्रिया का कम । ज्ञान और क्रिया की कानाधिकालाही दान और धर्म की सीमा-रेखा है । दार्शनिक विचारधारा की सफलता की चुजी वृद्धि है, जब कि धर्म के क्षेत्र में गाना मला मानती है । धार्मिक श्रद्धा और दार्शनिक सिद्धान्त में मानिस भेद या कि दानिक दृष्टिकोण शुद्ध रूप से बौद्धिक होला जय किधामिक भला का मूल आधार भावुकता है, जो FREET मी बदलने से भी नहीं चुक्ती । उनकी दृष्टि में
मालपापो मूल्य नही होता । ज्यों ही श्रद्धा वदलती है, गिनी ददन जाता है। इतना होते हुए भी यह नहीं कहा जा
नगला नि. पोरान एकालरूप से भिन्न है। धर्म पर जब किलाकार का वाय नंकट प्राता है उस समय दन उसे बचाने
नवने पल प्रागे जाना है। दान की सहायता के दिना :: काल सनी टिक भयाना। जिन प्रता के पीछे तर्क
नियाली नहीं हो सकती । तर्फ की कमोटी
साहीको मानक जीवित रह सकती है। धर्म नाम ना सादा होते हार भी पर नहीं नहा
नजी प्रामान्यता को अपने तर्फ साल से माधान मानाएं धर्म पे. क्षेत्र में ही