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जैन-दर्शन
अवस्था में भेद है। इस क्षरण की अवस्था इसी क्षण तक सीमित है । दूसरे क्षण की अवस्था दूसरे क्षण तक सीमित है । इसी प्रकार एक वस्तु की अवस्था दूसरी वस्तु की अवस्था से भिन्न है । 'कौमा काला है' इस वाक्य में कौए और कालेपन की जो एकता है, उसकी उपेक्षा करने के लिए ऋजुसूत्र नय कहता है कि कौआ कौया है और कालापन कालापन है । कौया और कालापन भिन्न भिन्न अवस्थाएँ है । यदि कालापन और कौमा एक होते तो भ्रमर भी कौआ हो जाता क्योंकि वह काला है । ऋजुसूत्र क्षणिकवाद में विश्वास रखता है । इसलिए प्रत्येक वस्तु को अस्थायी मानता है। जिस प्रकार कालभेद से वस्तुभेद की मान्यता है उसी प्रकार देशभेद से भी वस्तुभेद की मान्यता है । भिन्न भिन्न देश में रहने वाले पदार्थ भिन्न भिन्न हैं । इस प्रकार ऋजुसूत्र प्रत्येक वस्तु में भेद ही भेद देखता है । यह भेद द्रव्यमूलक न होकर पर्यायमूलक है। अतः यह नय पर्यायार्थिक है । यहीं से. पर्यायार्थिक नय का क्षेत्र प्रारम्भ होता है।
शब्द-काल, कारक, लिंग, संख्या आदि भेद से अर्थभेद मानना शब्द नय है । यह नय व आगे के दोनों नय शब्दशास्त्र से सम्बद्ध हैं। शब्दों के भेद से अर्थ में भेद करना, इनका कार्य है । शब्दनय एक ही वस्तु में काल, कारक, लिंग आदि के भेद से भेद मानता है। लिंग तीन प्रकार का होता है-पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग । इन तीनों लिंगों से भिन्न-भिन्न अर्थ का वोध होता है । शब्दनय स्त्रोलिंग से वाच्य अर्थ का बोध पुल्लिग से नहीं मानता । पुल्लिग से वाच्य अर्थ का बोध नपुसकलिंग से नहीं मानता। इसी प्रकार अन्य लिंगों की योजना भी कर लेनी चाहिये । स्त्रीलिंग में पुल्लिग का अभिधान किया जाता है। जैसे तारका स्त्रीलिंग है और स्वाति पुल्लिग है। पुल्लिग से स्त्रीलिंग के अभिधान का उदाहरण है अवगम और विद्या । स्त्रीलिंग में नपुंसकलिंग का प्रयोग होता है-जैसे वीणा के लिए पातोद्य का प्रयोग। नपुसकलिंग में स्त्रीलिंग का अभिधान किया जाता है-जैसे प्रायुध के लिए शक्ति का प्रयोग। पुल्लिग में . नपुंसकलिंग का प्रयोग किया जाता है-जैसे पट के लिए वस्त्र शब्द ' का प्रयोग। नपुसकलिंग में पुल्लिग का अभिधान होता है-जैसे द्रव्य