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'स्याद्वाद
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दोनों पक्ष एक ही वस्तु में श्रविरोध रूप से रहते हैं । यह दिखाने के लिए 'विरोधपूर्वक' अंश का प्रयोग किया गया है ।
घट के अस्तित्व धर्म को लेकर जो सप्तभंगी बनती है, वह इस प्रकार है :
१ - कथंचित् घट है । २ - कथंचित् घट नहीं है ।
३ - कथंचित घट है और नहीं है । ४ - कथंचित् घट प्रवक्तव्य है ।
५ - कथंचित् घट है और अवक्तव्य है ।
६ - कथंचित् घट नहीं है और अवक्तव्य है ।
७ - कथंचित् घट है, नहीं है और अवक्तव्य है ।
प्रथम भंग विधि की कल्पना के आधार पर है । इसमें घट के अस्तित्व का विधिपूर्वक प्रतिपादन है ।
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दूसरा भंग प्रतिषेध की कल्पना को लिए हुए है । जिस अस्तित्व का प्रथम भंग में विधिपूर्वक प्रतिपादन किया गया है उसी का इसमें निषेधपूर्वक प्रतिपादन है । प्रथम भंग में विधि की स्थापना की गई है । दूसरे में विधि का प्रतिषेध किया गया है । तोसरा भंग विधि और है । पहले विधि का ग्रहण यह भंग प्रथम और द्वितीय दोनों
चौथा भंग विधि और निषेध का युगपत् प्रतिपादन दोनों का युगपत् प्रतिपादन होना वचन इस भंग को अवक्तव्य कहा गया है ।
पाँचवाँ भंग में विधि और युगपत् विधि और निषेध दोनों का प्रतिपादन करता है । प्रथम और चतुर्थ के संयोग से यह भंग बनता है । छठे भंग निषेध और युगपत् विधि और निषेध दोनों का कथन है । यह भंग द्वितीय और चतुर्थ दोनों का संयोग है सातवाँ भंग क्रम से · विधि और निषेध और युगपत् विधि और निषेध का प्रतिपादन करता है । यह तृतीय और चतुर्थ भंग का संयोग है ।
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निषेध दोनों का क्रमशः प्रतिपादन करता करता है और बाद में निषेध का । भंगों का संयोग है ।
करता है । के सामर्थ्य के बाहर है, अतः