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स्याद्वाद
श्रस्ति श्रौर नास्तिः
बुद्ध ने 'स्ति' और 'नास्ति' दोनों को मानने से इनकार किया । सव है, ऐसा कहना एक ग्रन्त है । सव नहीं है, ऐसा कहना दूसरा न्त है। इन दोनों ग्रन्तों को छोड़कर तथागत मध्यम मार्ग का उपदेश देते हैं । महावीर ने 'सर्वमस्ति' और 'सर्वनास्ति' इन दोनों सिद्धान्तों की परीक्षा की । परीक्षा करके कहा कि जो अस्ति है वही अस्ति है, और जो नास्ति है वही नास्ति है । उन्ही के शब्दों में" हम अस्ति को नास्ति नहीं कहते, नास्ति को ग्रस्ति नहीं कहते । हम जो अस्ति है उसे ग्रस्ति कहते हैं, जो नास्ति हैं उसे नास्ति कहते हैं " 1
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अस्ति और नास्ति दोनों परिणमनशील हैं। यह बात भी महावीर ने स्वीकृत की । ग्रात्मा में अस्तित्व और नास्तित्व दोनों के परिणमन का सिद्धान्त स्थापित किया । इस प्रकार अस्ति और नास्ति के सम्बन्ध में भी अनेकान्त दृष्टि की स्थापना की ।
१ - सव्वं प्रत्थीति खो ब्राह्मण अयं एको अन्ते । ...सव्वं नत्थीति खो ब्राह्मण अयं दुतियो अन्तो । एते ते ब्राह्मण उभो अन्ते 'अनुपगम्म मज्झेन तथागतो धम्मं देते तिप्रविज्जापंचया संखारा |
- संयुक्तनिकाय १२/४७ । २ -- नो खलु वयं देवागुप्पिया ! अत्यिभावं नत्यित्ति वदामो, नत्थिभावं अथिति वदामो । अम्हे एां देवाप्पिया ! सव्वं ग्रत्थिभावं प्रत्यत्ति वदामो, सव्वं नत्थिभावं नत्यित्ति वदामो ।
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- भगवती सूत्र ७|१०|३०४ ३ – से नूगं भंते ! अस्थित्तं श्रत्थिते परिणमइ, नत्यित्तं नत्थित्ते परणमइ ?" हंता गोयमा
परिणमइ ।
जां भंते ! श्रत्थित्तं प्रस्थित्ते परिणमइ नत्थित्तं नत्थित्ते परिरगमइ, तं कि पयोगता वीसता ?
गोयमा ! पोगसा वि तं वीससा वि तं ।
जहा ते भंते ! प्रत्यित्तं श्रत्थित्ते परिणाम, तहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ ? जहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ तहा ते श्रत्थित्तं अथित्ते परिणम ?
हंता गोयमा ! जहा मे प्रत्थितं "
"परणमइ | वही १1३1३३