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स्थाद्वाद
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जैन दर्शन के अतिरिक्त अन्य भारतीय दर्शन वैशेषिक • आदि द्रव्य परमाणु को एकान्त नित्य मानते हैं । वे उसमें तनिक भी परिवर्तन नहीं मानते । परमारण का कार्य अनित्य हो सकता है, परमाणु स्वयं नहीं।
महावीर ने इस सिद्धान्त को नहीं माना। उन्होंने अपने अमोघ अस्त्र स्याहाद का यहाँ भी प्रयोग किया और परमाणु को नित्य और अनित्य दोनों प्रकार का माना।
"भगवन् ! परमाणु पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत ?" "गौतम ! स्याद् शाश्वत है, स्याद् अशाश्वत है।" "यह कैसे ?"
"गौतम ! द्रव्याथिक दृष्टि से शाश्वत है । वर्णपर्याय यावत् स्पर्शपर्याय की दृष्टि से अशाश्वत है।"
अन्यत्र भी पुद्गल की नित्यता का प्रतिपादन करते हुए यही वात कही कि द्रव्यदृष्टि से पुद्गल नित्य है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि तीनों कालों में ऐसा कोई समय नहीं, जिस समय पुद्गल पुद्गलरूप में न हो। इसी प्रकार पुद्गल की अनित्यता का भी पर्यायदृष्टि से प्रतिपादन किया। गौतम और महावीर के संवाद के इन शब्दों को देखिए____ "भगवन् ! क्या यह सम्भव है कि अतीत काल में किसी एक समय में जो पुद्गल रूक्ष हो वही अन्य समय में अरूक्ष हो ? क्या वह एक ही समय में एक देश से रूक्ष और दूसरे देश से अरूक्ष हो सकता है ? क्या यह भी सम्भव है कि स्वभाव से या अन्य प्रयोग के द्वारा किसी पुद्गल में अनेक वर्णपरिणाम हो जाएँ और वैसा परिणाम नष्ट होकर बाद में एक वर्ण-परिणाम भी हो जाय ?"
१-परमाणु पोग्गले रणं भंते ! कि सासए असासए ?
गोयमा ! सिय सासए सिय प्रसासए । से केगट्टेणं ००० ? गोयमा ! दवट्ठयाए सासर, वन्नपज्जवेहिं जाव फासपज्जवेहिं प्रसासए।
-वही १४१४१५१२ २-वही १४.४२ १६