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जैन-दर्शन
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जीव सान्त भी है और ग्रनन्त भी है । द्रव्य की दृष्टि से एक जीव सान्त है । क्षेत्र की अपेक्षा से जीव प्रसंख्यात प्रदेशवाला है, ग्रतः वह सान्त है । काल की दृष्टि से जीव हमेशा है, इसलिए वह अनन्त है । भाव की अपेक्षा से जीव के अनन्त ज्ञानपर्याय हैं, अनन्त दर्शनपर्याय हैं, अनन्त चारित्रपर्याय हैं, अनन्त अगुरुलघुपर्याय हैं | इसलिए वह ग्रनन्त है' ।
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द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार दृष्टियों से जीव की मान्तता-ग्रनन्तता का विचार किया गया है । द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से जीव सीमित है, ग्रतः सान्त है । काल और भाव की दृष्टि से जीव असीमित है, श्रतः ग्रनन्त है । तात्पर्य यह है कि जीव कथंचित् सान्त है, कथंचित् अनंत है ।
पुद्गल की नित्यता और श्रनित्यता :
द्रव्य का सबसे छोटा अंश जिसका पुनः विभाग न हो सके परमाणु है । परमाणु के चार प्रकार बताये गए हैं- द्रव्यपरमाणु, क्षेत्रपरमाणुः कालपरमाणु और भावपरमाणु' । वर्णादिपर्याय की विवक्षा के बिना जो सूक्ष्मतम द्रव्य है, वह द्रव्यपरमाणु है । इसे पुद्गल परमाणु भी कहते हैं । श्राकाश द्रव्य का सूक्ष्मतम प्रदेश क्षेत्रपरमाणु है | समय का सूक्ष्मतम प्रदेश कालपरमाणु है । द्रव्य परमाणु में वर्णादिपर्याय की विवक्षा होने पर जिस परमाणु का ग्रहण होता है, वह भावपरमाणु है ।
१ - जे विय संदया ! जाव सयंते जोवे श्ररणंते जीवे, तस्स वि य गं एमट्ठे एवं खलु जाव दव्वग्रो गं एगे जीवे सयंते, खेत्तयो गं जीवे ग्रसखेजपएसिए ग्रसंखेज एसोगा ग्रत्थि पुरा से अंते, कालो गं जीवे न कयावि न ग्रासि जाव निन्चे नत्थि पुरण से यंते, भावयोगं जीवे प्रांता गागापजवा, ग्ररणंता दंग पजवा, ग्रांता घरित्तपजवा, यता गुरुलठ्ठयपजवा नत्थि पुग्ग से अंत |
- भगवती सूत्र, २।१।६० २ - गोयमा ! चव्विहे परमाणु पत्नत्ते तंजहा दव्वपरमाणु, खेत्तपरमाणु,
कालपरमाणु, भावपरमाणु ।
- वही, २०१५