________________
२८६
जैन-दर्शन
दृष्टि से अशाश्वत है। गौतम ! द्रव्यार्थिक दृष्टि से शाश्वत है, भावार्थिक दृष्टि से अशाश्वत है।"
द्रव्यदृष्टि अभेदवादी है और पर्यायदृष्टि भेदवादी है । द्रव्यदृष्टि से जीव नित्य है और पर्यायदृष्टि अर्थात् भावदृष्टि से जीव अनित्य है । जीव में जीवत्व सामान्य का कभी अभाव नहीं होता । वह किसी भी अवस्था में हो--जीव ही रहता है, अजीव नहीं होता । यह द्रव्यदृष्टि है । इस दृष्टि से जीव नित्य है । जीव किसी न किसी पर्याय में रहता है । एक पर्याय को छोड़कर दूसरी पर्याय ग्रहण करता रहता है । इस दृष्टि से वह अशाश्वत है--अनित्य है ।
जीव सामान्य की नित्यता-अनित्यता के अतिरिक्त नारकादि जीवों की नित्यता-अनित्यता का भी प्रतिपादन किया गया है ।
"भगवन् ! नारक शाश्वत हैं या अशाश्वत ?" "गौतम ! कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं।" "भगवन् ! यह कैसे ?"
"गौतम ! अव्युच्छित्तिनय की अपेक्षा से शाश्वत हैं, व्युच्छित्तिनय की अपेक्षा से अशाश्वत हैं। इसी प्रकार वैमानिक देवों के विषय में भी समझना चाहिए।"
अव्युच्छित्ति नय का अर्थ है द्रव्याथिक नय और व्युच्छित्तिनय का अर्थ है पर्यायाथिक नय । जैसे जीव सामान्य को द्रव्य की अपेक्षा से
१-जीवाणं भंते ! कि सासया असासया ? गोयमा ! जीवा सिय सासया सिय असासया । ०००० गोयमा ! दवठ्ठयाए सासया भावठ्ठयाए असासया।
~~~भगवती सूत्र, ७:१२७३ २-नेरइया णं भंते ! कि सासया असासया ?
गोपमा ! सिय सासया सिय असासया । से केपट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ ००० ? गोयमा ! अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए सासया, वोच्छित्तिणयट्ठयाए असासया । एवं जाव वेमारिगया।
-वही, ७।३।२७६