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स्याद्वाद
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महावीर ने सान्तता और अनन्तता का अपनी दृष्टि से उपयुक्त समाधान किया । बुद्ध ने सान्तता और अनन्तता दोनों को अव्याकृत कोटि में रखा। जीव की नित्यता और अनित्यता :
बुद्ध ने जीव की नित्यता और अनित्यता के प्रश्न को भी अव्याकृत कोटि में रखा। महावीर ने इस प्रश्न का स्याद्वाद दृष्टि से समाधान किया। उन्होंने मोक्ष-प्राप्ति के लिए इस प्रकार के प्रश्नों का ज्ञान भी आवश्यक माना । ग्राचारांग के प्रारम्भिक कुछ वाक्यों से इस बात का पता लगता है-जब तक यह मालूम न हो जाय कि मैं अर्थात् मेरा जीव एक गति से दूसरी गति में जाता है, जीव कहाँ से पाया, कौन था और कहाँ जाएगा, तब तक कोई जीव यात्मवादी नहीं हो सकता, लोकवादी नहीं हो सकता, कर्मवादी नहीं हो सकता, और क्रियावादी नहीं हो सकता । ये सब बातें : मालूम होने पर ही जीव आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी और क्रियावादी बन सकता है।
जीव की शाश्वतता और अशाश्वतता के लिए निम्न संवाद देखिए
गौतम-"भगवन् ! जीव शाश्वत है या अशाश्वत" ? महावीर-“गौतम ! जीव किसी दृष्टि से शाश्वत है, किसी
१-इहमेगेसिं नो सन्ना भवई तंजहा-पुरत्थिमायो वा दिसायो आगो अहमंसि, दाहिणायो वा...........'यागो अहमंसि । एवमेगेसि नो नायं भवइ-पत्थि मे पाया उववाइए । नस्थि मे पाया उववाइए । के अहं पासी, के वा इग्रो चुनो इह पेच्चा भविस्सामि ?
से जं पुरण प्राणेज्जा सहसम्मइयाए परवागरणेणं अन्नेसिवा अन्तिए सोच्चा तंजहा-पुरथिमायो.............'अत्यि मे पाया......... से पायावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई।
-~~-याचारांग, ११११११२-३