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शानवाद और प्रमाणशास्त्र
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किसी विरोधी भाव से किसी के प्रभाव का ग्रनुमान, विरोधी साधन ने होने वाला अनुमान है । 'यहाँ पर ठण्ड नहीं है क्योंकि कि अग्नि जल रही है', 'यहाँ पर ग्रग्नि का प्रभाव है क्योंकि ठग लग रही है ग्रादि विरोधी साधन के उदाहरण हैं । ग्रग्नि और ठण्डक का परस्पर विरोध है, इसलिये एक के होने पर दूसरी नही हो सकती। विरोधी की मात्रा ठीक-ठीक होने पर ही विरोधी गाधन का प्रयोग हो सकता है । ग्रग्नि की छोटी सी चिनगारी से ठण्डक के प्रभाव का अनुमान नहीं किया जा सकता । खूब अग्नि होने पर ही ठण्डक के प्रभाव का अनुमान करना सम्यक् है ।
परार्थानुमान - साधन
र साध्य के अविनाभाव सम्बन्ध के कथन में उत्पन्न होने वाला ज्ञान परार्थानुमान है' | स्वार्थानुमान का विवेचन करते समय हमने देखा है कि वह व्यक्ति में दूसरे की सहायता के बिना ही उत्पन्न होता है । परार्थानुमान इससे विपरीत है । एक व्यक्ति ने स्वयं साधन और साध्य के अविनाभाव का ग्रहण किया है और दूसरा व्यक्ति ऐसा है, जिसे इस सम्बन्ध का ज्ञान नहीं है । पहला व्यक्ति अपने ज्ञान का प्रयोग दूसरे व्यक्ति को समझाने के लिये करता है । उसके कथन से उत्पन्न होने वाला ज्ञान परार्थानुमान है । यह अनुमान उनके लिए नहीं है जो साधन और साध्य के सम्बन्ध से परिचित है ग्रपितु उनके लिए है जिसे इस सम्बन्ध का ज्ञान नहीं है, इसका नाम परार्थानुमान है ।
परार्थानुमान ज्ञानात्मक है किन्तु उपचार से उसे बनाने वाले वगन को भी परार्थानुमान कहा गया है। ज्ञानात्मक परार्थानुमान को उत्पत्ति वचनात्मक परार्थानुमान पर निर्भर है, इसलिए उपचार ने वचन को भी परार्थानुमान कहा जाता है । परार्थानुमान के लिए हेतु का वचनात्मक प्रयोग दो तरह से हो सकता है । साध्य के होने पर ही साधन का होना बताने वाला एक प्रकार है | साध्य
१- पोषमानाभिधानः परार्धम्' |
- प्रमाणमीमांना २१९६ २- परार्धमनुमानमुपचारात् ।
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---प्रमाणनयनरमान ॥२३