________________
२६२
. जैन-दर्शन दूसरी लौकिक या व्यावहारिक दृष्टि है। पारमार्थिक दृष्टि से पारमार्थिक प्रत्यक्ष का विश्लेषण किया और व्यावहारिक दृष्टि से सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष का अनुमोदन किया' । पारमार्थिक प्रत्यक्ष सकल और विकल के भेद से दो प्रकार का है। सकलप्रत्यक्ष केवलज्ञान है और विकलप्रत्यक्ष अवधिज्ञान व मनःपर्ययज्ञान हैं । सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा-ये चार भेद होते हैं । पारमार्थिक और सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के भेद-प्रभेदों का वर्णन पहले किया जा चुका है। यहाँ हम परोक्ष पर थोड़ा सा 'प्रकाश डालेंगे। परोक्ष: __जो ज्ञान अविशद अथवा अस्पष्ट है वह परोक्ष है। परोक्ष प्रत्यक्ष से ठीक विपरीत है । जिसमें वैशद्य अथवा स्पष्टता का अभाव है वह परोक्ष है । परोक्ष के पाँच भेद हैं-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम' ।
स्मृति-वासना का उद्बोध होने पर उत्पन्न होने वाला 'वह' इस आकार वाला ज्ञान स्मृति है। स्मृति अतीत के अनुभव का स्मरण है । किसी ज्ञान या अनुभव की वासना की जागृति से उत्पन्न होने वाला ज्ञान स्मृति कहलाता है । वासना की जागृति कैसे होती है ? समानता, विरोध आदि अनेक कारणों से वासना का उद्बोध हो सकता है । चूकि स्मृति अतीत के अनुभव का स्मरण है इसलिए 'वह' इस प्रकार का ज्ञान स्मृति की विशेषता है । ___ भारतीय दर्शनशास्त्र के इतिहास में जैनदर्शन ही ऐसा है जो स्मृति को प्रमाण मानता है। स्मृति को प्रमाण न मानने वाले
१-'तद् द्विप्रकारं सांव्यवहारिक पारमाथिकं च ।'
-प्रमाणनयनतत्त्वालोक, २।४ २- 'अविशिद: परोक्षम्' -प्रमाणमीमांसा १।२।१ ।
'अस्पष्टं परोक्षम्' -प्रमाणनयतत्त्वालोक ३।१ ३-'स्मरगाप्रत्यभिज्ञानतर्वानुमानागमभेदतस्तत् पंचप्रकारम्' । -वही ३।२ ४- वासनोबोधहेतुका तदित्याकारा स्मृतिः ।
___ --प्रमागामीमांसा ११२।३