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मानयाद और प्रमागमास्त्र
२२६ श्रादि है। जिनकी कोई प्रादि नहीं है वह अनादिक श्रुत है। प्रध्यापने धन अनादिक है और पर्यायन्प ले सादिक है । सपर्यवमिन श्रुन वह है जिनका अन्त होता है। जिसका कभी अन्त नहीं होता वह अपयवमिन थत है। यहां भी द्रव्य और पर्याय दृष्टि का उपयोग करना चाहिए । गमिक उसे कहते हैं, जिनके सदृश पाठ उपलब्ध । प्रगमिकः अनहगाक्षरालापक होता है। अंगप्रविष्ट और अंगवामय के विषय में लिख ही चुके है।
अलमान का मुख्य प्राधार शब्द है । हस्तसंकेत ग्रादि अन्य गाधनी ने भी यह ज्ञान होना है। वहां पर ये माधन गब्द का ही माय मरते हैं । अन्य गब्बों की तरह उनका स्पष्ट उच्चारण कानों में नही पता । मीन उच्चारण से ही वे अपना कार्य पसी । धनमान जब इतना अभ्यस्त हो जाता है कि उनके लिए मनमरगा की अावश्यकता नहीं रह जाती नव वह मतिज्ञान के धनगंत या जाता है । धनमान के लिए चिन्तन और संकेतस्मरण पपल पाया है। अन्यान दशा में ऐसा न होने पर वह जान धन की कोटि से बाहर निकाल कर गति की कोटि में या जाता है । गति और श्रत:
जनन की माता के अनुसार प्रत्येक जीव में कम-से-कम मान-मनि पार धन धावायक होते हैं। वनमान के समय न
मानपि विषय में मतभेद है। कुछ लोग उन समय भी भतिशोर पलको सत्ता मानता र कहते है कि केवलज्ञान के HIT नाम उनकार प्रकाश दब जाता है। नूयं के
म . को हार चन्द्र यादि का प्रयास नहींवत् मालूम 1 लीग का काम नही मानते । स्नक मत केवल
मा ! मलि, अनादि क्षारोपगमिक है । जब MER . रोजाना दावापामिद जान नहीं
जबन बी मा नानी ! देवल मीना मान ।।पामायती होना है। हमें
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कपिल में जमान्यानि