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मानवाद और प्रमागतान्त्र
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श्रुतज्ञान :
धनवान का अर्थ है, वह जान जोधत अर्थात मास्त्रनिबद्ध है। प्राप्त पुरापाग प्रगान प्रागम या अन्य गास्त्रों से जो ज्ञान होता है यह अनजान है । अतजान मनिपूर्वक होता है । उनके दो भेद है.-~-अंग वार और अंगप्रविष्ट । अंगवाह्य अनेक प्रकार का है। अंगप्रविष्ट के बाद मंद है।
घनजान मनिपूर्वक होता है, इसका क्या अर्थ है ? श्रु तनान होने के लिए ब्द-श्रवण आवश्यक है, यांकि शास्त्र वचनात्मक है। शब्दप्रयास गतिक अन्तर्गत है, पांकि यह श्रोन का दिपय है। जब शब्द मुना देता है तब उसको अर्थ का स्मरण होता है । शब्द-श्रवण रूप जो व्यापारी यह मतिमान है। नदनन्तर उत्पन्न होने वाला जान तज्ञान
नीलिए मरिजानकार है और श्रृतनान कार्य है। मतिनान के प्रभाव में अलमान नहीं हो सकता। अतजान का वास्तविक कारा तो अनजानावरमा का क्षयोपाम है। मनिशान तो उसका बहिरंग कारण
मानसान होने पर भी यदि तमानावरण का क्षयोपशम न हो तो नमान नही होता । अन्यथा जो कोई दान-वचन सुनता, सब को घनान हो जाता।
गाव घोर यंगप्रविष्ट रूप से घ तज्ञान दो प्रकार का है । अंगचिट गेमले है, जो साक्षात् तीथंकार द्वारा प्रकाशित होता है और नगमानानुभवत किया हवा होता है । प्रायु, बल, बुद्धि प्रादि की सीमा परमादेवकार बाद में होने वाले प्राचार्य सर्वसाधारण के हित
नागालाविष्टायांनी घाधार बनाकर भिन्न भिन्न विषयों पर म त मागवायमान अन्तर्गत है। तात्पर्य यह है जिनकविता र गणधर वे अंगप्रविष्ट चार जिन.
मी मान्य धागा । अंगवारा अन्य है। अंगपायलिया, शालिग धादि धने प्रकार है। अंगप्रविष्ट के माम परेवा अंग पलाते है। इनके नाम पहन गिनाये जा - महाप।
--अस्वागत १२०