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ज्ञानवाद और प्रमाणशास्त्र
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मालूम होता है । नन्दीसूत्र के अनुसार इस भूमिका का सार यह है :
ज्ञान
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ग्राभिनिवोधिक श्रुत
अवधि
मन:पर्यय
केवल
प्रत्यक्ष
परोक्ष
इन्द्रिय प्रत्यक्ष
नोइन्द्रियप्रत्यक्ष प्राभिनिवोधिक
१-थोवेन्द्रिय प्रत्यक्ष १-अवधि २-चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष २-मन:पर्यय ३-घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष ३-केवल ४-रसनेन्द्रिय प्रत्यक्ष ५-स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष
श्रुतनिःसृत
अश्रुतनि:सृत
। ईहा अवाय
अवग्रह
धारणा
व्यंजनावग्रह
अर्थावग्रह
औत्पत्तिकी वैनयिकी कर्मजा पारिणामिकी उपर्युक्त तीनों भूमिकाओं को देखने से पता लगता है कि प्रथम भूमिका में दार्शनिक पुट का अभाव है । यह भूमिका प्राचीन परम्परा