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२०८
प्रत्यक्ष
केवल नोकेवल
I
अबधि
ज्ञान I
मन:पर्यय
भवप्रत्यय क्षायोपशमिक ऋजुमति विपुलमति
जैन-दर्शन
ग्राभिनिवोधिक श्रुत
परोक्ष
आवश्यक
श्रुतनिःसृत I
प्रश्रुत निःसृत
1
अर्थावग्रह व्यंजनावग्रह ग्रर्थावग्रह व्यंजनावग्रह
अंगप्रविष्ट
अंगबाह्य
I
आवश्यक व्यतिरिक्त
1
उत्कालिक
कालिक ३- द्वितीय भूमिका में इन्द्रियजन्य मतिज्ञान का परोक्ष के अन्दर समावेश किया गया । तृतीय भूमिका में इस विषय में थोड़ा सा परिवर्तन हो गया । इन्द्रियजन्य मतिज्ञान को प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों में स्थान दिया गया । इसका कारण लौकिक प्रभाव