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जैन-दर्शन
स्पर्श सहचारी हैं। जहाँ इन चारों में से एक भी गुण की प्रतीति होती हो वहाँ शेप तीन गुण भी अवश्य रहते हैं। उनकी सूक्ष्मता के कारण चाहे स्पष्ट प्रतीति न होती हो, किन्तु उनका सद्भाव वहाँ अवश्य होता है । रूप, रस, गन्ध और स्पर्श चारों गुण प्रत्येक भीतिक द्रव्य में रहते हैं। वायु में रूप होता है, क्योंकि वह स्पशाविनाभावी है, जैसे घट में रूप है क्योंकि वहाँ स्पर्श है । रूप होते हुए भी रूप का ग्रहगा क्यों नहीं होता ? क्योंकि चक्षुरादि इन्द्रियाँ स्थूल विषय का ग्रहण करती हैं। जैसे सूक्ष्मगन्ध के रहते हुए भी प्रागन्द्रिय से उसका ग्रहण नहीं होता उसी प्रकार वायु में सूक्ष्म रूप रहता है तथापि चक्षुरिन्द्रिय उसका ग्रहण नहीं कर सकती । जैनों की यह मान्यता आधुनिक विज्ञान की कसोटी पर भी सच्ची उतरती है। विज्ञान मानता है कि 'निरंतर ठंडा करते रहने से वायु एक प्रकार के नीले रस में परिवर्तित हो जाता है जिस प्रकार कि वाप्प पानी के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।" जब वायु में वर्ण-रूप सिद्ध हो जाता है तो रस और गंध तो सिद्ध हो ही जाते हैं।
वैशेषिक तेज में रस और गन्ध नहीं मानते । वे कहते हैं कि तेज में स्पर्श और रूप ही होता है । यह धारणा भी मिथ्या है। तेज-अग्नि भी एक प्रकार का पुद्गल द्रव्य हैं, इसलिए उसमें चारो गुण होते हैं। विज्ञान भी इस बात को मानता है कि अग्नि एक भौतिक द्रव्य है और उसमें उष्णता का अंश अधिक रहता है।
गन्ध केवल पृथ्वी में ही है , ऐसा वैशेषिकों का विश्वास है। यह भी ठीक नहीं । हमें साधारण तौर से वायु, अग्नि आदि में गंध की प्रतीति नहीं होती। इसके अाधार पर हम यह नहीं कह सकते कि इनमें गंध है ही नहीं। चींटी जितनी नासानी से शक्कर की गंध का पता लगा लेती है उतनी आसानी से हम नहीं लगा सकते। बिल्ली जितनी सरलता से दही और दूध की गंध के आधार पर वहाँ तक पहुंच जाती है उतनी सरलता से हम लोग नहीं पहुँच सकते ।
1. Air can be converted bluish liquid by conti
nuous cooling, just as steam can be converted into water.