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सीमित न थे अपितु जीवन के सभी अंगों में प्रविष्ट हो चुके थे । एक जाति दूसरी जाति से, एक वर्ण दूसरे वर्ण से इतना ग्रधिक कट चुका था कि दोनों में किसी प्रकार की एकता न रही । पारस्परिक विवाह सम्बन्ध या खान-पान की बात तो एक चोर रही, परस्पर स्पर्श करना भी पाप माना जाने लगा । छुआछूत का रोग केवल एक वर्ग तक ही सीमित हो ऐसा भी नहीं था । शूद्र वर्ण के जितने लोग थे वे सब अन्य तीन वर्णों की दृष्टि में अस्पर्श्य थे । इसके अतिरिक्त तीनों वर्णों के लोगों में भी छुआछूत का व्यवहार प्रचलित था । ब्राह्मण वर्ग के लोग किसी भी वर्ग के हाथ का छुना हुआ भोजन नहीं खा सकते । ब्राह्मणों की दृष्टि में किसी दृष्टि से तीनों वर्ण अस्पर्श्य थे । इतना ही नहीं अपितु एक ही वर्ण का एक वर्ग दूसरे वर्ग को समय विशेष पर अछूत समझता था । आज भी यही दशा समाज में देखी जाती है । यह तो हुई वर्णव्यवस्था की बात | इसके अतिरिक्त लिंग भेद भी उस समय कम न था । स्त्रीजाति को पुरुष जाति से अनेक अवसरों पर हीन समझा जाता था । स्त्रियों का व्यापार करना साधारण सी बात थी । इसके अनेक उदाहरण आगमों में मिलते हैं । महावीर ने इन सारे भेदभावों को समाप्त करने का कार्य अपने हाथ में लिया । वर्ण और आश्रम की व्यवस्था को मिटाने का प्रयत्न किया । सभी लोगों को समान सामाजिक अधिकार दिए । अपने संघ में सब लोगों को आने का अवसर दिया । उन्हें इस कार्य में उस समय सफलता भी मिली । उनके श्रमण-संघ में ब्राह्मण वर्ण के लोगों से लेकर शूद्र वर्ण के निम्नतम वर्ग, भंगी, चमार आदि जाति के लोग थे ।
आर्थिक समस्या : अर्थ के क्षेत्र में भी महावीर ने समानता लाने का प्रयत्न किया । अहिंसा की भूमिका पर खड़ा होने वाला अपरिग्रहवाद उन्हें बहुत प्रिय था । उन्होंने परिग्रह को बहुत बड़ा पाप बताया । परिग्रह के लिये परिग्रह की मर्यादा का उपदेश दिया । यह मर्यादा अन्न-वस्त्र से लेकर सोना-चाँदी आदि तक थी । यह कहना सम्भवतः उचित न होगा कि उन्होंने साम्यवाद का ही प्रचार किया, क्योंकि आज के साम्यवाद का प्रचार उस समय की समस्या ही न थी । आज के युग का आर्थिक ढाँचा उस युग के आर्थिक ढाँचे से भिन्न प्रकार का है । आज के युग का सामूहिक शोषण उस युग में प्रचलित न था । फिर भी यह बात अवश्य है कि उस समय आर्थिक असमानता समाज में विद्यमान थी । उस असमानता को दूर करने का महावीर