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जैन-दर्शन
__इस प्रकार ११ अंग+१२ उपांग+४ छेद+४ मूल+ब १ अावश्यक= इस प्रकार कुल ३२ सूत्र हैं।
इन ३२ सूत्रों के अतिरिक्त नियुक्ति प्रादि टीकाएँ इस परम्परा को स्वतः प्रमाणत्वेन मान्य नहीं हैं। आगमप्रामाण्य का सार :
१- श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा-११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, २ चूलिका सूत्र, ६ छेद सूत्र, १० प्रकीर्णक-इस प्रकार ४५ अागम ग्रन्थ तथा नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य आदि टीकाएँ। .
२-श्वेताम्बर स्थानकवासी एवं श्वेताम्बर तेरापन्थी परम्परा-११ अंग, १२ उपांग, ४ छेद, ४ मूल, व १ श्रावश्यक-इस प्रकार ३२ पागम ग्रंथ।
३-दिगम्बर परम्परा-ये सभी पागम ग्रंथ लुप्त । षट्खण्डागम, कषायपाहुड, महाबन्ध- इस प्रकार तीन मूल ग्रंथ एवं धवला, जयधवला आदि टीकाएँ । कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थ प्रवचनसार, पंचास्तिकाय आदि मूलग्रन्थ एवं टीकाएँ। आगमयुग का अन्त :
आगम-साहित्य ज्ञान की विविध शाखाओं का एक बहुत बड़ा भांडार है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इतना होते हुए भी किसी एक विषय को लेकर संक्षिप्त और सरल ढङ्ग से जो प्रतिपादन होना चाहिए उसकी इसमें कमी है । इस कथन का यह अभिप्राय नहीं कि आगमों में किसी विपय का संक्षिप्त एवं व्यवस्थित प्रतिपादन है ही नहीं। कहीं-कहीं बहुत सरल एवं संक्षिप्त प्रतिपादन अवश्य मिलता है। किन्तु प्रत्येक विषय पर इस प्रकार की सामग्री नहीं है । दूसरी बात यह है कि आगम की शैली में पुनरुक्ति की मात्रा भी कुछ अधिक है। यह मात्र आगम की शैली का दोप नहीं है, क्योंकि उस समय के साहित्य की परम्परा ही ऐसी थी। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया, कुछ ऐसे ग्रन्थों की आवश्यकता प्रतीत होने लगी, जो आकार से छोटे हों और विषय का संक्षिप्त प्रतिपादन करने वाले हों । सिद्धान्त की मुख्य मुख्य बातें जिनमें मिल जाएँ, किन्तु उनका बहुत विस्तार न हो। इसी अावश्यकता